johzr

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

गन्धर्वराज घर की किलकारी,चम्पावती की मन ज्योति।

सिंहलद्वीप की राजरागिनी , स्त्री की थी उच्चतम कोटि।

सुंदरता तन में भी अनुपम ,मन बुद्धि संग जीत मनोति।

रतन सेन को भान हुआ तो ,बनी वो प्रेम कहानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

चमक चाँदनी सी,शोभा सूरज ,सुरभि सरस मनोहर ।

श्वास सुरों सी ,वचन मधुरतम ,राज्य की बनी धरोहर ।

गन्धर्वसेन तब रचा स्वयंवर ,पाने को राज सुयोवर ।

जीत स्वयंवर रतनसिंह तब पद्मिनी अपनी बनानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

एक परी सी थी वो सुंदर , स्वर्ग अप्सराएं भी शरमाई।

राजा रतन संग ब्याह रचा कर, गढ़ चित्तोड़ में वो आई ।

बचपन को करके विदा, वो मन ही मन लगती हर्षाई ।

पीहर छोड़, प्रजा मन रम गयी ,शान चित्तोड़ रवानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

रानी बन वो चित्तोड़ में आई ,मान रतन का गगन हुआ ।

पल-क्षण सब रंगत से भर गए ,समय साथ अब रतन हुआ।

जन-जन में खुशियों की बारिश ,राजमहल मन मगन हुआ।

रतन पद्मिनी महल चढे जब ,प्रजा की आन निभानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

राज-काज राजा के बल पर ,रानी फिर भी साथ बनी ।

सुंदर रानी की प्रसिद्धि जब भारत भर में आम बनी ।

त्याग-वीरता तन-मन में बसी,प्रजा की वो जुबान बनी।

सुंदरता से थी वह ऊपर आखिर तो वह क्षत्राणी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

दिल्ली सल्तनत पर था काबिज ख़िलजी जो सुल्तान हुआ।

अलाउदीन ही नाम था उसका पर रावण सा शैतान हुआ ।

चर्चा जब दरबार में पहुँची ,सुंदर पद्मिनी बखान हुआ ।

जागा वो उत्पाती मन था चोट भी जिसको खानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

ख़िलजी ने तब रची कूटनीति ,चित्तोड़ राज मेहमान बना।

पाने को एक झलक पद्मिनी की ,उसका मन परेशान बना ।

झलक मिले वो उस क्षत्राणी ,बस उसका अरमान बना ।

जल-बिम्ब दिखा ऐसे संयोग से विधि को बात बनानी थी।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

झलक पाकर जब वो शातिर ,पाने को बस आतुर ही लगा।

राजा रतन किया आतिथ्य तो ,छल-बल से उनको ही ठगा।

अगवा कर ,फिर बन्दी बनाया ,कैदखाने में उनको रखा ।

शर्त रखी पद्मिनी देने की पर रतन बात न मानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

भान हुआ जब राजपूतों को राज-रतन को क्यों-कैसे छला।

क्षत्राणियां भी जोश से भर गयी पद्मिनी का भी मन उबला।

गोरां-बादल लगी खबर तब,शौर्य उनका बिजली सा चला।

जान भले बलिदान करें अब ,स्वतन्त्रता राजा दिलानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

छल से छली को ही छलने की सब करने लगे तयारी ।

सजा पालकियां बैठे सैनिक,छुप हाथ लिये तलवारी ।

भरम फैलाया कि रानीसा जाती ख़िलजी के दरबारी ।

पालकियों में जमें थे सैनिक जिनकी रगे बलिदानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

गोरां बादल पालकियां लेकर चल तो दिये दिल्ली की ओर ।

छल-बल से राजा को छुड़ाकर लौटे तो मच गया था शोर ।

गौरां जब रणखेत हुआ , बादल संग रतन दिखाया जोर ।

ख़िलजी को धता बताकर ही चित्तोड़ शान बढ़ानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

चन्द मेवाड़ के राजपूतों ने ,सेना सल्तनत को आज ठगी ।

ख़िलजी को जैसे लगा तमाचा चोट अभिमान पे ऐसी लगी।

हार-चोट पर पद्मिनी-लालसा आग बनी तन-मन में लगी ।

गौरां-बादल की देख वीरता उसे दांतों ऊँगली दबानी थी।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

लेकर बड़ा एक सैनिक-दल बल ,घेरा डाला मेवाड़ जमीं ।

किला चित्तोड़ शत्रु घेर लिया,प्रजा की लगी थी साँस थमीं ।

क्षत्रियों के तन क्रोध से जल उठे ,राजपूती तलवारें खिचीं ।

वीरों ने फिर पहन ‘केसरियां’ ‘शाका’ की मन में ठानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

शत्रु सेना का जोर देखकर चित्तोड़ उठी एक लहर गमीं ।

क्षत्रियों ने तब लोहा लेकर लाल कर दी थी आज जमीं ।

थाह स्तिथि सेना लेकर क्षत्राणियों-नैन में बढ़ गई नमी ।

नैनों में अब ज्वाला भरकर आन स्वयं की बचानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

जीत सामने देख शत्रु की मन को इस्पात सा कठोर किया ।

जिस तन को अभिमान से संवरा,आग समर्पण ठान लिया।

पतिव्रता का प्रण मन लेकर ,सती ही निज को मान लिया ।

पद्मिनी ने तब जौहर करने की सबको बात बखानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

शत्रु जीत के जीत न पाए ,आओ आज ही कुछ कर जाएं ।

अब करना क्या जीकर बहनों ,मरकर इक इतिहास बनाएं ।

तन को जला के राख बनाएं,आओ अब इस ज्वाल समाएं।

ढोल नगाड़ो के तेज स्वर में ज्वाला तेज भड़कानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

कर सोलह श्रृंगार दुल्हन सा,सोलह हजार की संख्या हुई।

बड़ी विशाल सी चिता बनाके झुण्ड के झुण्ड ही कूद गयी।

चिंगारियां अब ज्वाला बन गयी सुंदरता सब अब राख हुई।

ख़िलजी जब किले में आया भष्म ही रही पहचानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

शान-आन स्वाभिमान के खातिर वो ज्वाला में लीन हुई ।

ख़िलजी जो भारत मालिक था स्तिथि उसकी दीन हुई ।

सुंदरता उस देह की आखिर ज्वाल में जल न मलीन हुई।

ज्वाला से मिल गई ज्वाला वो ऐसी पद्मिनी रानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,वो मेवाड़ की रानी थी।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *