जब से दुनियाँ में आया हूँ
तब से ही भागे जा रहा।
कभी खुद के लिए तो
कभी अपनो के लिए।
न जाने मुझे क्या क्या
सच में करना पड़ रहा।
और जीवन के पथ पर
साथ सभी के चल रहा।।
बहुत कुछ खो कर के
यहाँ तक तो आ पहुँचा।
कभी गमों में जिया तो
कभी खुशियों में जिया।
पर अपनी आत्मा को
कभी मरने नहीं दिया।
इसलिए तो अब तक
मानवता जिंदा बची रही।।
न मन मेरा मैला था
न तन पर अब कपड़ा है।
दिगम्बर भेष लेकर के
किया है त्याग सबका।
और छोड़कर मोह माया
और लोभ आदि को।
निकल पड़े आत्म कल्याण के
कठिन और सच्चे पथ पर।।