निःशब्द हूँ…
कि क्या हुआ ये क्यो हुआ
हुआ अगर ये जो भी तो गुनहगार कौन है?
नि:शब्द हूँ…
क़ायनात ने दिया, तो नोच लूं निचोड़ लूं
कर सकूं अगर कभी तो रुख हवा का मोड़ लूं।
निःशब्द हूँ…
खेल लूं हवाओं से मैं मोड़ दूँ घटाओं को
कर सकूं अगर कभी तो क़ायनात मरोड़ लूं।
निःशब्द हूँ…
क़ादिर (शक्तिशाली) बनूं अगर कभी तो चांद को भी तोड़ दूँ
अव्वल बनूं मैं हर जगह दुनिया को पीछे छोड़ दूँ
निःशब्द हूँ…
करते रहे गर इस क़दर
करते रहे जो अब तलक
रहेगा न सदा यह तेरा मेरा ये फ़लसफ़ा
गुमान क्यों गुरुर क्यों
है शून्य हम अकेले में…
निःशब्द हूँ।।