नागरी प्रचारिणी सभा, देवरिया में कहानीकार महेश सिंह ने अपनी कहानी ‘किराये का मकान’ का पाठ किया तत्पश्चात कहानी पर चर्चा करते हुए प्रसिद्ध एक्टिविस्ट डॉ. चतुरानन ओझा ने कहा कि- कहानी का सुखांत होना आस्वस्ति पैदा करता है। जीवन स्वयं इतना दुखी हो गया है, हमें सुख और चैन के लिए कहानी की ओर देखना पड़ता है। कहानी अपने तात्कालिक यथार्थ से टकराती है और सहज गति से चलते हुए अपनी परिणति तक पहुंचती है। आगे कहानी पर बहस करते हुए डॉ. दिवाकर प्रसाद तिवारी ने कहा कि- यह कहानी अपने छोटे से कलेवर में विभिन्न संदर्भों पर प्रकाश डालती है। इसकी प्रतीक योजना सहज बन पड़ी है। कामरेड उद्भव मिश्र ने कहा- कि महेश जी की यह कहानी जिस उद्देश्य को लेकर लिखी गयी है उसमे वह बहुत बड़ी है, यह कहानी आज के बिगड़े माहौल में समरसता के सूत्र तलाशती है। आगे कहानी पर अपनी राय व्यक्त करते हुए बृजेन्द्र मिश्र ने कहा कि- यह कहानी समाज में फैले जहरीली हवाओं के विरुद्ध संघर्ष करती है। धार्मिक एवं जातीय संकीर्णताओं को नकारती है। मनुष्य और मनुष्य के बीच विश्वास के भाव उत्पन्न करती है। इस रूप में यह कहानी बहुत बड़ी हो जाती है। जिला विज्ञान क्लब के संयोजक अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा- कहानी यह बताती है, जीवन में यदि कोई बाधा आये तो और अधिक उत्साह से कार्य करना चाहिए । कवि एवं गीतकार सरोज पाण्डेय ने कहा कि – कथाकार महेश सिंह जी की यह कहानी अनेकशः सम्भावनाओं को एक साथ उत्पन्न करती है। यह कहानी उनके सफल कहानीकार होने के लिए मील का पत्थर साबित होगी। कवि एवं समाजसेवी शिवाजी शाही ने कहानी की प्रसंशा करते हुए अपना महाकाव्य ‘अपराजेय राम’ कथाकार को सप्रेम प्रदान करते हुए सम्मानित किया। पतहर पत्रिका के सम्पादक चक्रपाणि ओझा ने कहानी पर अपनी बात रखते हुए बताया – आज के दौर में जहाँ जटिल कहानियां ही देखने को मिल रही हैं, वहाँ यह कहानी अपनी सहजता एवं सरलता से मुग्ध कर देती है। कथ्य एवं संवाद श्रेष्ठ बन पड़े हैं। इस पाठ एवं परिचर्चा में कहानीकार नीरज सिंह ने भी अपनी कहानी ‘कजरी’ का पाठ किया जिसपर अपनी बात रखते हुए जितेंद्र तिवारी ने कहा- यह कहानी घर परिवार में व्याप्त कलह के माहौल को उकेरती है और उसके शमन के रास्ते की ओर ईशारा करती है। इस अवसर पर सभा के अध्यक्ष परमेश्वर जोशी ने कथाकार महेश सिंह और नीरज सिंह को सम्मानित किया और कहा कि-मैं भविष्य का एक महान कहानीकार देख रहा हूँ। कार्यक्रम का संचालन करते हुए सभा के मंत्री इन्द्रकुमार दीक्षित ने ‘किराये का मकान’ कहानी को सफल और आज के समय के लिए जरूरी कहानी बताया और कहा कि- इस कहानी में एक उत्तम कहानी के सारे गुण मौजूद हैं। कहानी का सारांश : कहानी एक ऐसे युवक की है जिसकी नौकरी एक ऐसे शहर में लगती है जहाँ उसको कोई नहीं जानता। शुरू-शुरू में वह एक होटल से अपनी ड्यूटी पर आना -जाना करता है। उसके बाद समय मिलने पर वह शहर में घूम-घूम कर अकेले ही किराये का मकान ढूढने का प्रयत्न करता है। सबसे पहले वह मुस्लिम मोहल्ले में जाता है। लेकिन उसका नाम रामचन्दर होने के कारण उसे कोई भी अपना मकान नहीं देता। फिर वह हिंदुओं के मोहल्ले में जाता है लेकिन वहाँ की स्थिति और भी खराब है। लोग उसके बारे में नहीं बल्कि उसकी जाति के बारे में जानना चाहते हैं। इसलिए उसे बुरा लगता है और वह खुद ऐसी मानसिकता वाले लोगों के घर में रहने से मना कर देता है। अंत में थक-हार कर शहर से सटे एक गांव में जाता है। जहाँ उसे एक अच्छा मकान मिल जाता है। मकान में उसके साथ ही नौकरी कर रहे अनवर साहब भी रहने के लिए आते हैं। इस तरह दोनों मिलकर साथ रहने लगते हैं। लेकिन दोनों को तमाम सामाजिक और धार्मिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस तरह इन समस्याओं का सामना करते हुए एक साथ भाईचारे से रहने और गंगा जमुनी तहजीब की मिशाल पेश करके समाज को आईना दिखाने का प्रयास ही इस कहानी का मूल कथ्य है। लेखक जितनी बारीकी से इस कहानी को बुना है उतनी ही बारीकी से संप्रदायिकता का समाधान भी पेश करता है। कुल मिलाकर साम्प्रदायिकता का बड़ी सरलता और सहजात से विकल्प उपलब्ध कराने की कोशिश करती है यह कहानी।

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