वो रूठ कर के आज हम से इस कदर चला गया
कि जैसे आसमां से तारा टूट कर चला गया
दिल-ओ-दिमाग मे मेरे बना के अपनी ही कब्र
बिलखता छोड़ कर के कोई उम्र भर चला गया
कि कल तलक कभी थे हम भी जिनके लख़्त-ए-जिगर
वो आज गैर की तरह डाल कर नज़र चला गया
बड़े समय के बाद जाना तबियत-ए-नासाज़ है
गया नही कि बेख़ुदी का सब असर चला गया