तुझपे ग़ज़ल लिखूं या कोई किताब लिख दूँ…
दिल करता है तुझे महकता हुआ ग़ुलाब लिख दूँ…।
तेरे हुस्न की जहाँ में कोई मिसाल नहीं है…
तुझे आसमां पे चमकता हुआ माहताब लिख दूँ…।
तेरी खूबसूरती वो दहकता हुआ शोला है….
कभी कभी लगता है तुझे आफ़ताब लिख दूँ…।
कई दिन हो गये तुम बहुत रूठे रूठे रहते हो…
आ बैठ किसी रोज़ तेरी नाराज़गी का हिसाब लिख दूँ…।
फिर एक पल भी तेरे दिल को सुकूँ ना आ पायेगा…
अगर तेरे ज़ुल्मो का मैं अज़ाब लिख दूँ…।
होता है हर सवाल का कोई ना कोई जवाब…
लेकिन तू वो है जिसे मैं लाजवाब लिख दूँ…।
तू “साहिल” की शायरी की वो अनमोल ग़ज़ल है…
जिसे खुद “साहिल” भी पढ़े तो उसे तेरे लियें बेताब लिख दूँ…।

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