मानव ही मानवता को शर्मसार करता है
सांप डसने से क्या कभी इंकार करता है
उसको भी सज़ा दो गुनहगार तो वह भी है
जो ज़ुबां और आंखों से बलात्कार करता है
तू ग़ैर है मत देख मेरी बर्बादी के सपने
ऐसा काम सिर्फ़ मेरा रिश्तेदार करता है
देखकर जो नज़रें चुराता था कल तलक
वो भी छुप कर आज मेरा दीदार करता है
दे जाता है दर्द इस दिल को अक़्सर वही
अपना मान जिसपर ऐतबार करता है
मुझको मिटाना तो चाहता है मेरा दुश्मन
लेकिन मेरी ग़ज़लों से वो प्यार करता है