अब मज़दूरों की घर वापसी जन-विद्रोह में तब्दील है, इन की व्यवस्था सेना के सिपुर्द हो 

सी ए ए को ले कर मुस्लिम समाज को भड़काने और कोरोना को ले कर मज़दूरों को भड़काने में जो योगदान कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों ने दिया है, इतिहास और समय ने इसे दर्ज कर लिया है। सरकार से अपनी नफरत में, सरकार को निपटाने के लिए यह चालबाजियां, यह अफवाहें देश को जिस बर्बादी और तबाही के समंदर में डुबो चुकी हैं, वह लाजवाब हैं। मोदी सरकार की अक्षमता और लापरवाह रवैया भी इस में बहुत बड़ा कारक है। लेकिन कोरोना जो अब गांव-गांव पहुंच कर ज्वालामुखी के जिस ढेर पर देश को बिठा चुका है, मोदी सरकार के संभालने का वश का नहीं है। नरेंद्र मोदी बस चुनावी राजनीति, कूटनीति में ही सफल हैं। कुशल इवेंट मैनेजर ही साबित हुए हैं। सी ए ए पर जिस तरह लगाम उन के हाथ से छूटी, देश भर में मिनी दंगे हुए, मोदी की अक्षमता बारंबार साबित हुई। लेकिन कोरोना को संभालने में मोदी की विफलता ने देश को जिस संकट के मुहाने पर ला खड़ा किया है, वह देश को आत्महत्या की राह पर ले जा चुके है।
कोरोना के मद्देनज़र एक भी बार मोदी ने सर्वदलीय बैठक कर विपक्षी दलों का ईगो मसाज कर उन्हें साथ लेने की कोशिश क्यों नहीं की, समझ से परे है। सिर्फ मुख्यमंत्रियों के साथ प्रशासनिक बैठक करना समाज को साथ ले कर चलना नहीं होता। कोरोना को काबू करने के लिए जिस सख्ती की दरकार थी मोदी ने वह सख्ती क्यों नहीं किया, यह भी समझ से परे है। असल दिक्क्त यह हुई कि मोदी ने कोरोना को भी गुजरात का भूकंप समझ लिया। भूकंप के बाद का निर्माण समझ लिया। कांग्रेस को भी सिर्फ राहुल गांधी समझ लिया। भूला  गए कि नहीं-नहीं करते हुए भी पाकिस्तान बनवाने का रिकार्ड है कांग्रेस का। भूल गए कि कम्युनिस्ट पार्टियों में पाकिस्तान बनवाने वाले मुस्लिम लोग के ही लोग ज़्यादा हैं। दो कदम आगे, चार कदम पीछे चलने वाले लोग हैं। जैसे सी ए ए में शाहीन बाग़ को मोदी सरकार ने अंडर इस्टीमेट किया और देश को दंगों के चौराहे पर खड़ा कर दिया। ठीक वैसे ही तबलीगी जमात को अंदर इस्टीमेट किया। और मज़दूरों को भड़काने का ट्रायल हो गया। अब मज़दूरों की घर वापसी जन-विद्रोह में तब्दील है। इस बात को, समय की दीवार पर लिखी इस इबारत को अगर नरेंद्र मोदी सरकार नहीं पढ़ सकती तो अपने तमाम मुगालते भुला कर उसे इस बात को आंख और चश्मा साफ़ कर फिर से सही ठीक से पढ़ लेना चाहिए। मज़दूरों और गरीबों की आह से बड़े-बड़े चक्रवर्ती राजा भय खाते रहे हैं और एक से एक लोकतांत्रिक शासक भी।
लोकतंत्र का अर्थ भारत में अब भले बदल गया हो पर दुनिया में लोकतंत्र की नींव ही लोक है। लोक कल्याणकारी राज्य है। लोक नहीं है जिस तंत्र में तो वह काहे का लोकतंत्र ? इस कोरोना काल में दिया जलाने, थाली बजाने, फूल बरसाने आदि-इत्यादि के अलावा, देश की रीढ़ मज़दूरों, मज़दूरों के पेट और सम्मान की बात किस मद में भूल गई मोदी सरकार भला। किसी भी आपदा में, किसी भी दंगे फसाद में गरीब मज़दूर ही पहला शिकार बनता है, यह बात मोदी क्या नहीं जानते। मोदी चांदी का चम्मच मुंह में ले कर तो पैदा हुए नहीं हैं। फिर यह कैसे भूल गई मोदी सरकार। कि मज़दूरों को टेकेन ग्रांटेड ले लिया ? आखिर मज़दूरों को मैनेज करना कैसे और क्यों भूल गई मोदी सरकार ? मोदी सरकार तो राम राज्य की हामीदार मानती है। तो कैसे भूल गई कि लोक के सम्मान में एक धोबी के दिए गए ताने को भी राम ने अपने राजा के कर्तव्य में शुमार कर सीता को वनवास दिया था।
तो क्या मोदी की अनुभवहीनता ने मज़दूरों को इस जन-विद्रोह के लिए उकसा दिया। शहरों से मज़दूरों के निरंतर पलायन को अभी भी मोदी सरकार क्यों नहीं थाम पाई। या फिर उन के घर जाने का सम्मानजनक प्रबंध क्यों नहीं कर पाई है अभी तक मोदी सरकार ?
पाकिस्तान विभाजन के बाद देश में हुए भयानक दंगों की याद आती है। तमाम कोशिशों के बावजूद जब नेहरू सरकार देशव्यापी दंगों को रोकने में पूरी तरह नाकाम हो गई।  नेहरू और पटेल नेता तो बहुत बड़े थे पर प्रशासनिक अनुभव में शून्य थे। तो हार मान कर एक रात नेहरू और पटेल माउंबेटन के पास पहुंचे। माउंटबेटन से हाथ जोड़ कर कहा, रोज-रोज इतने लोगों को मरते हुए अब हम नहीं देख सकते। आप अपना राज पाट वापस ले लीजिए। लेकिन जनता को रोज दंगों में मरने से प्लीज़ बचा लीजिए। माउंटबेटन ने नेहरू और पटेल से कहा कि ऐसा भी मत कीजिए राज-पाट मुझे वापस कर दीजिए। ऐसा करने पर भारत की जनता आप को कभी माफ़ नहीं करेगी। न मुझ को माफ़ करेगी। तो करें क्या, लोगों को ऐसे ही मरने दें ? नेहरू ने माउंटबेटन से कहा।  माउंटबेटन ने कहा, बिलकुल नहीं। दंगे हम ही रोकेंगे। लेकिन राज-पाट ले कर नहीं। माउंटबेटन ने नेहरू और पटेल से कहा कि आप लोग एक कमेटी बना दीजिए। उस कमेटी में जिस-जिस को कहता हूं, उसे-उसे मेंबर बना दीजिए। फिर उस कमेटी का चीफ मुझे बना दीजिए। इस तरह बिना किसी उल्ट-पुलट के देश का प्रशासन मेरे हाथ में आ जाएगा और मैं सब ठीक कर दूंगा। नेहरू और पटेल ने ठीक ऐसा ही किया। और बिना किसी चिल-पो के माउंटबेटन ने सब कुछ सामान्य कर दिया। देश में दंगे समाप्त हो गए।
मोदी के पास लेकिन कोई माउंटबेटन नहीं है। माउंटबेटन भले नहीं है पर माउंटबेटन की मिसाल तो है। अब से सही, विराट बहुमत की सरकार का मद त्याग कर नरेंद्र मोदी को एक सर्वदलीय कमेटी बना कर। देश के सभी वर्ग को साथ ले कर, सब की सलाह से कोरोना से लड़ने के लिए नए सिरे से रणनीति बना कर चलना चाहिए। यह बस और रेल की पॉलिटिक्स बहुत हो चुकी। यह देश सब का है और देश के सभी मज़दूर सम्मानित नागरिक हैं। इन मज़दूरों को संभालने के लिए, इन को घर पहुंचाने के लिए पूरे देश की वर्तमान पुलिस और प्रशासन व्यवस्था पूरी तरह फेल कर चुकी है। समय आ गया है कि मज़दूरों के खाने-पीने से लगायत घर जाने तक की सारी व्यवस्था सेना के हाथ सौंप दी जानी चाहिए। अब सेना ही एक रास्ता है, इस जन-विद्रोह को थामने का। मज़दूरों के घाव पर मरहम लगाने का। सेना ही सम्मान पूर्वक उन का ख्याल रख सकती है। आखिर देश में जब कभी बाढ़, दंगा, भूकंप, बादल फटने या तमाम अन्य विपदा में सेना ने बिना भेद-भाव के सर्वदा ही देश की सर्वोत्कृष्ट सेवा की मिसाल पेश की है।
मोदी सरकार को अब बिना कोई देरी किए मज़दूरों की सेवा के लिए सेना उतार देनी चाहिए। यह कोरोना अभी लंबे समय तक दुनिया को तमाम करता रहेगा। तो न सिर्फ देश को  बल्कि समूची दुनिया को तमाम-तमाम मतभेद भुला कर कदम से कदम मिला कर इस कोरोना से लड़ना चाहिए। आखिर राम ने रावण को परास्त करने के लिए भालू, वानर, रीछ, गिलहरी, नल-नील, जटायु, जामवंत, सुग्रीव, अंगद, विभीषण आदि हर किसी को साथ ले कर लड़ाई लड़ी थी। सिर्फ लक्ष्मण और हनुमान ही को नहीं हर किसी को साथ लिया था। तो सोनिया, मोनिया, राहुल, माहुल, प्रियंका, वनिका, समाजवादी, साम्यवादी, औलाना, मौलाना, आदरी, पादरी, पंडित, वंडित, दलित, फलित, अमीर, गरीब हर किसी को हाथ जोड़ कर, हर किसी को साथ ले कर यह कोरोना की लड़ाई जीती जा सकती है। कोई इधर अफवाह फैलाए, कोई उधर भड़काए, यह सब बहुत हो चुका। कोरोना अब अपने रौद्र रूप में आने को बस तैयार हो चुका है। लोग बाग़ अपनी-अपनी जयचंदी, अपनी-अपनी बस, अपनी-अपनी ट्रेन ले कर बहुत गुल खिला चुके। अब और खिलाएंगे तो खुद भी कोरोना की भेंट चढ़ने को तैयार हो जाएं।

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