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मेरे दिल मे बसे हो तुम,
तो में कैसे तुम्हे भूले।

उदासी के दिनों की तुम,
मेरी हम दर्द थी तुम।
इसलिए तो तुम मुझे,
बहुत याद आते हो।
मगर अब तुम मुझे,
शायद भूल गए थे।।

आज फिर से तुम्ही ने,
निभा दी अपनी दोस्ती।

इतने वर्षों के बाद,
किया फिरसे तुम्ही याद।
में शुक्र गुजार हूँ प्रभु का,
जिसने याद दिलादी तुमको।
की तुम्हारा कोई दोस्त,
आज फिर तकलीफ में है।।

मैं कैसे भूल जाऊं,
उन दिनों को मैं।

नया नया आया था,
तुम्हारे इस शहर में।
न कोई जान न पहचान,
थी तुम्हारे शहर में।
फिर भी तुमने मुझे,
अपना बना लिया था।।

मुझे समझाया था कि,
दोस्ती कैसी होती है।

एक इंसान दूसरे का,
जब थाम लेता है हाथ।
और उसके दुखो को,
निस्वार्थ भावों से।
जो करता है उन्हें दूर,
वही दोस्त सच्चा होता है।।

इंसानियत आज भी है,
लोगो के दिलो में जिंदा है।
जो इंसान को इंसान से,
जोड़कर दिलसे चलता है।
और धर्म मानवता का,
निभाता है दिल से।
मुझे फक्र है उस पर,
जो सदा ही साथ है मेरे।।

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