कहाँ से हम चले थे,
कहाँ तक आ पहुंचे।
सभी की मेहनत ने,
दिखाया था जोश अपना।
तभी तो हम भारत को,
इतना विकसित कर सके।
पिन से लेकर एरोप्लेन,
अब हम बनाने जो लगे।।
कड़ी लगन और परिश्रम,
के द्वारा ये हुआ है।
तभी तो भारत को,
दुनियां में स्थापित कर सके।
हमें उन विद्वानों और,
वैज्ञानिकों के योगदानों को।
कभी भी भूल नहीं सकते,
उन किये गये कामों को।।
पर अब हम फिर से,
वही पर पहुँच रहे है।
जहाँ इंसानों और जानवरों में,
कोई अंतर नहीं दिखता।
पढ़े लिखे और बुध्दिजीवी भी,
वही सब काम कर रहे।
जो उन से बेहतर अनपढ़,
हमारे देश में कर सकते।।
कहाँ से हम चले थे,
कहाँ तक आ पहुंचे हैं।
सारी मेहनत और लगन का,
अब बुरा हाल हो गया।
यदि ऐसा ही चलता रहा,
हमारे अपने देश में।
तो हम इंसानियत की,
सारी मर्यादा भूल जाएंगे।
और फिर इंसान ही इंसान को,
बड़े आसानी से खा जाएगा।।