kalam ka kamal
लिखता मैं आ रहा,
गीत मिलन के मैं ।
कलम मेरी रुकती नही,
लिखने को नए गीत।
क्या क्या में लिख चुका,
मुझको ही नही पता।
और कब तक लिखना है,
ये भी नही पता।
लिखता में आ रहा…..।।
कभी लिखा शृंगार पर।
कभी लिखा इतिहास पर।
और कभी लिख दिया,
आधुनिक समाज पर।
फिर भी आया नही,
सुधार लोगो की सोच में।।
लिखता मैं आ रहा…।।
लिखते लिखते थक गयी, 
सोच बदलने वाली बातें।
फिर नही बदले लोगों के विचार।
इससे ज्यादा क्या कर सकता,
एक रचनाकार।।
 लिखता हूँ सही बात,
अपने गीतों में…
अपने गीतों में……।।

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