#गार्गीकॉलेजमामलेपरचुप्पीभारीपड़ेगी

आप ही थे ना जिसने प्रियंका रेड्डी के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के बाद प्रशासन को गालियां दीं, देश को असुरक्षित बताया और ना जाने किस किस तरह से अपना गुस्सा दिखाया । आप ही थे ना जिसने उसके हत्यारों के एनकाउंटर पर खुशी मनाई ? ऐसी किसी भी विभत्स घटना पर आप ही होते हैं ना जो दुख जताते हैं अपनी वाल को बेटियों के साथ हो रहे अन्याय की कहानी कविताओं से भर देते, तस्वीरें काली करते हैं ? उस समय लगता है कि हमारा देश सच में बेटियों को लेकर सोचने लगा है लेकिन फिर जब गार्गी कॉलेज जैसी घटना सामने आती है तब ये लगने लगता है कि आपकी सहानुभूति मात्र मुद्दों के हिसाब से चलती है । दिल्ली के गार्गी कॉलेज में एनुअल फेस्ट के दौरान कई मनचले अंदर घुसे लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की सारी हदें पार कर दीं । कहा तो इतना तक जा रहा है कि लड़कियों के सामने कई मानसिक रोगियों ने मास्टरबेट तक किया । ये दिल्ली है, देश की राजधानी, यहां कभी चलती बस में लड़की को नोच खाया जाता है तो कभी विद्या के मंदिर में घुस कर इनके साथ दिन दहाड़े छेड़छाड़ की जाती है । हो तो हर जगह रहा है लेकिन राजधानी का कुछ तो खौफ होना चाहिए ? मगर नहीं है, यहां तो सबसे ज़्यादा मनमानी चल रही है । ऊपर से आजकल एक नया चलन चला है, हर मामले को राजनीतिक या सांप्रदायिक बना देना का । ऐसा होते ही हर मुद्दे पर लोग बंट जाते हैं और भले बंटे हुओं की कौन सुनता है ? यहां बंटने की नहीं बल्कि सोचने की ज़रूरत, हम सबको । ऐसा कौन है जिसके घर से कोई बहन बेटी कॉलेज या स्कूल नहीं जाती ? आज ऐसा एक कॉलेज में हुआ है कल को किसी दूसरे में भी हो सकता है । सवाल होना चाहिए कि आखिर मीडिया क्यों चुप है ? पुलिस प्रशासन ने किसी को पकड़ा क्यों नहीं, कॉलेज प्रबंधन चुप्प क्यों है ? आप लड़िये विरोध करिए एक दूसरे पर आरोप लगाइए लेकिन कम से कम बेटियों के मामले में चुप मत रहिए । ये 100 से ज़्यादा मानसिक रोगियों की भीड़ कॉलेज में घुस सकती है तो फिर आगे इसे घरों में घुसने से भी ना रोका जा सकेगा । इस बात को कोई रंग मत दीजिए ये हम सबसे जुड़ी है । कम से कम महिलाएं तो इस पर बोलें । क्या ज़रूरी है कि बेटियों के लिए तभी सहानुभूति दिखाई जाए जब वो किसी भेड़िए का शिकार हो जाएं ? आज ये भेड़िए सामने हैं लेकिन हम चुप हैं । क्यों ? उनके शिकार करने के इंतज़ार में ?

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One thought on “गार्गी कॉलेज”

  1. धीरज जी,
    दिक्कत तो यहीं हैं कि कोई समझ कहां पाता है लड़कियों को।वो भी उतनी ही, बिना डरे सहमे सांस लेना चाहतीं तो हैं, इसी स्वतंत्र देश में।सभ्य समाज में,लेकिन ऐसा होने देना कुछ नकारात्मक ऊर्जा वालों को बर्दाश्त नहीं है, उनका पुरुष+अहम वादी मन, इतनी आसानी से होने दे?ख़ैर!बदलेंगी स्थितियां निश्चित ही।और क्रम जारी है।वैसे आपकी भूरी भूरी प्रशंसा कि आपने इस मुद्दे पर नज़र, नज़रिया और लेखनी तो चलाई।जबकि …
    आपके लिए।आप जैसे युवाओं से हर लड़की की यही अपेक्षा है कि” सोच बदलो तभी तो बदलेगा इंडिया।”
    Dr.Vandana Tiwary

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