shiva

कविता : सावन मास

सावन के मास में वो, शिवजी पर जल ढारत है। बेल पत्ती और फूलों से, पूजा नित्यदिन करती हैं। मनोकामना पूरी कर दो, सावन के इस महीने में। मिलवा दो प्रभु अब मुझे, उस जीवन साथी से। जिसके सपने देख… Read More

shiv parvati

कविता : भाता है सावन का महीना

सावन का महीना चल रहा शिव-पार्वती जी का आराम। गृहस्थ और कुवारों को भी काम काज से मिली है छुट्टी। जिसके चलते कर सकते है शिव पार्वती जी की भक्ति। श्रध्दा भक्ति हो गई कबूल तो मिल जायेंगे साक्षात तुम्हें… Read More

laltin

कविता : बचपन की चाहत

बड़ी ही अजीब किस्सा रहा मेरी जिंदगी का। वो मुझे चाह कर अपने पास बुलाते रहे। पर मैं अपने आपको और कुछ समझता रहा। और उनकी चाहत को हंसी में उड़ाता रहा।। कहते है वक्त सदा एक जैसा नहीं होता।… Read More

iswar bhakti

गीत : भक्ति गुरुदेव की

भक्ति मैं करता तेरे साझ और सबेरे। चरण पखारू तेरे साझ और सबरे। चरण पखारू तेरे साझा और सबरे। तेरे मंद मंद दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन। तेरे मंद मंद दो नैन…। क्या ज्ञान क्या अज्ञानी जन, आते… Read More

kanaha (2)

कविता : तरस रही हूँ

मोम की तरह पूरी रात दिल रोशनी से पिघलता रहा। पर वो इस हसीन रात को नहीं आये मेरे दिल में। मैं जलती रही और नीचे फिरसे जमती रही। फिरसे उनके लिए जलने और उनके दिलमें जमाने के लिए।। हर… Read More

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कविता : सावन की आग

बचपन खोकर आई जवानी साथ में लाई रंग अनेक। दिलको दिलसे मिलाने को देखो आ गई अब ये जवानी। अंग अंग अब मेरा फाड़कता आता जब सावन का महीना। नये नये जोड़ो को देखकर मेरा भी दिल खिल उठता।। अंदर… Read More

river

कविता : सुधार लो गलतियाँ

कुछ खोता हूँ कुछ पाने को कुछ खाता हूँ जीने को। पर क्यों नहीं बच पाता हे मानव तू अपने कर्मो से। दान दया धर्म आदि भी तू आज कल बहुत कर रहा। पर वर्षो से जो कर रहा था… Read More

human alone

कविता : क्या समझे और क्या जाने

जो डरता है स्वयं से उसे सफलता मिलती है। और समझ पता है वो इस कलयुगी संसार को। डराने धमकाने वाले तो बहुत है घर बहार में। पर जो स्वयं से डरता है वो औरों से क्या डरेगा। तभी तो… Read More

peole alone

कविता : एकाकी हो गये

सफर में हम निकले है बहुत दिनों के बाद। छुट गई है अब आदत लोकल में चलने की। पहले ही जिंदगी की आधी उम्र निकल दिये है। मुंबई की लोकल ट्रेन में हम चल चल कर।। कैसे किया जिंदगी को… Read More

man waiting

कविता : ख्यावों से चैन मिलता है

बहुत बेचैन रहकर के जीआ हूँ अब तक मैं। तन्हाईयों ने भी मेरा दिया है साथ इसमें। तभी तो अव्यवस्थित बना रहा मेरा जीवन। किसे मैं दोष दू इसका नहीं कर सका फैसला।। बहुत मायूस जब होता हूँ तो चला… Read More