बचपन से किशोरावस्था तक, जब हम किसी भी पशु-पछी को बस एक उपभोग की चीज़ मानते थे, दर्द से कोई वास्ता नहीं था तब-तक उनकी चीर फाड़, निगल जाने को भी कभी ग़लत नहीं माना, न ही कभी कोई कष्ट… Read More
बचपन से किशोरावस्था तक, जब हम किसी भी पशु-पछी को बस एक उपभोग की चीज़ मानते थे, दर्द से कोई वास्ता नहीं था तब-तक उनकी चीर फाड़, निगल जाने को भी कभी ग़लत नहीं माना, न ही कभी कोई कष्ट… Read More