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विश्व सिनेमा में ईरान का इतना ज्यादा दबदबा है कि अरब सिनेमा की ओर आम तौर पर हमारा ध्यान कम जाता है। मुस्लिम बहुल देशों में ईरान के बाद तुर्की के सिनेमा ने भी अच्छी शोहरत बटोरी है। लेकिन पिछले कुछ सालों से दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक मिश्र ( इजिप्ट) के सिनेमा की भी खूब चर्चा हो रही है। दूसरी ओर ईरान की प्रतिस्पर्धा में सऊदी अरब भी सिनेमा के जरिए विश्व कूटनीति में बढ़त लेने के लिए पिछले दो सालों से सक्रिय हुआ है।

मिश्र के युवा फिल्मकार मोहम्मद दियाब की फिल्म ” एश्तेबाक ” (2016), जिसे अंग्रेजी में ” क्लैश ” कहा गया है , को विश्व सिनेमा में साहसिक पहल माना जा रहा है। अपनी पिछली फिल्म ” काहिरा 678 ” (2010) से दुनियाभर मे ख्यात हुए मोहम्मद दियाब ने मिश्र में इस्लामी क्रांति (2011) के दो साल बाद 28 जून 2013 को हुए सबसे बड़े जन विद्रोह के बीच कुछ अलग अलग चरित्रों के साथ यह अभूतपूर्व सिनेमा रचा है। यह फिल्म मिश्र की इस्लामी क्रान्ति की असफलता और जनता के मोहभंग को सिनेमाई मुहावरे में सामने लाती है।
मोहम्मद दियाब पहली बार चर्चा में तब आए थे जब उन्होंने 2007 में एक ड्रग माफिया पर ” अल जजीरा” ( दि आइलैंड) नामक ब्लाक बस्टर फिल्म लिखी थी जिसने अरब सिनेमा में सबसे ज्यादा पैसा कमाया था। इस फिल्म के निर्देशक थे शेरिफ अराफा। इस्लामिक क्रांति के ठीक एक महीने पहले दिसंबर 2010 में मोहम्मद दियाब की पहली फीचर फिल्म आई ” काहिरा 678″ जो मिश्र में महामारी बन चुकी सार्वजनिक जगहों पर औरतों के यौन शोषण की सच्ची घटनाओं पर आधारित थी। 678 उस बस पर लिखा रूट नंबर है जिसमें एक औरत का यौन शोषण होता है। इसमें अलग-अलग पृष्ठभूमि की तीन औरतों की कहानियां हैं जिनका सार्वजनिक जगहों पर यौन शोषण होता है। इस फिल्म ने उन्हें दुनिया भर में शोहरत दिलाई।

25 जनवरी 2011 को शुरू हुई इस्लामी क्रांति ने होस्नी मुबारक के तीस साल पुराने शासन का अंत कर दिया था। 1981 से ही मिश्र के राष्ट्रपति रहे होस्नी मुबारक ने 11 फरवरी 2011 को इस्तीफा दे दिया था।संसद और संविधान भंग कर दिए गए थे। देश की सत्ता सेना के हाथ में आ गई थी।

मुस्लिम ब्रदरहूड पार्टी के इस्लाम परस्त मोहम्मद मोर्सी जून 2012 में नये राष्ट्रपति चुने जाते हैं।दो साल बाद ही उनकी कट्टर इस्लामी नीतियों से तंग होकर 2013 की गर्मियों मे नये राष्ट्रपति के खिलाफ इतिहास का सबसे बड़ा जन विरोध सामनें आता है।मुस्लिम ब्रदरहूड और सेना समर्थकों के बीच जारी खूनी संघर्ष में विभिन्न राजनैतिक- धार्मिक विचारोंवाले प्रदर्शकारियों से भरा सेना का एक ट्रक काहिरा की सड़कों पर घूम रहा है।दहशत ,असुरक्षा , आक्रोश से घिरे मृत्यु के करीब जाते इन कैदियों के जरिए आगे की पूरी फिल्म समाज की विस्मयकारी सचाईयों से गुजरती है।

मोहम्मद दियाब खुद इस्लामी क्रंति से जुड़े रहे हैं ।उनका कहना है कि इस्लामिक क्रांति की विफलता के बावजूद यह सपना देखा जा सकता है कि हममें से ऐसा कोई नेतृत्व उभरेगा जो इस्लामी कानून और सैनिक शासन- दोनो से अलग होकर लोकतांत्रिक तरीके से देश का शासन चलाएगा।हम दुनियाभर में देख रहे हैं कि सत्ता परिवर्तन के बावजूद हालात नहीं बदल रहे हैं।इस्लामी देशों का संकट और गहरा है।

वे कहते हैं- फिल्म का अंत खुला रखा गया है क्योंकि मुझे खुद नहीं पता कि आगे क्या होगा? ट्रक के कैदी शुरू से हीं आजाद होने की कोशिश करते हैं ।पहले वे आपस में लड़ते झगड़ते हैं, फिर एक-दूसरे को बचाने की कोशिश करते हैं।उनकी त्रासदी है कि सत्ता के खूनी संघर्ष में कोई भी पक्ष उन्हे अपना नहीं समझ रहा। आज मिश्र की यही सचाई है।
” क्लैश” राजनीति से अधिक अपने सिनेमाई करिश्में के कारण महत्वपूर्ण है।कैमरा ज्यादा समय ट्रक के भीतर देखता है। भीतर की निगाह से हीं बाहर को देखता है। जवान -बूढ़े औरत-मर्द और बच्चे – जैसे सारा देश हीं कैद में है।उनकी छोटी-छोटी गतिविधियां, बहसें, यादें और सपने एक पूरा संसार रचते हैं।सुबह से शाम, रात और सुबह तक की चौबीस घंटे की पटकथा में हम एक ऐसे सिनेमाई अनुभव से गुजरते हैं जो विश्व सिनेमा में अबतक अनदेखा था।

इस फिल्म को पढ़ने के लिए कुछ राजनीतिक घटनाओं को याद करना जरूरी है। जिस दिन, यानि 4 जून 2009 को, मिश्र के काहिरा विश्वविद्यालय में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भाषण दिया, उसी दिन यह तय हो गया था कि अब भारी उथल-पुथल होने वाली है। यह भी याद रहे कि लोकतंत्र बहाली के लिए हुई इस्लामी क्रांति की दूसरी सबसे बड़ी मांग थी कि न्यूनतम और अधिकतम मजदूरी तय की जाय। पहली माग थी कि राष्ट्रपति होस्नी मुबारक इस्तीफा दे। यह भी कि जिस होस्नी मुबारक को अपदस्थ करने के लिए यह क्रांति हुई उसे अमरीका, यूरोप और इजरायल का वर्षों तक जबरदस्त समर्थन और आर्थिक मदद हासिल थी।मिश्र पर तीस साल राज करने वाले होस्नी मुबारक को 2 जून 2012 को सपरिवार जेल भेज दिया गया। पांच साल बाद खराब सेहत के कारण 24 मार्च 2017 को उन्हें रिहा किया गया और इसी साल 25 फरवरी 2020 को उनकी अनाम मौत हो गई। इस्लामिक क्रांति के बाद राष्ट्रपति बने मोहम्मद मोर्सी को 2014 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्ही के रक्षा मंत्री रहे जनरल अब्दुल फतह अल सिसी ने बुरी तरह शिकस्त दी। मोहम्मद मोर्सी, उनके परिवार और मंत्रिमंडल पर मुकद्दमा चला, उन्हें जेल हुई और अदालत में पेशी के दौरान पिछले साल 17 जून 2019 को उनकी लाचार मौत हो गई। आज मिश्र को अरब रिपब्लिक ऑफ इजिप्ट कहते हैं जो इस्लामी देश जरूर है पर वहां के नये संविधान में धर्म और अभिव्यक्ति की आज़ादी है।

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