आज हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में पूरा सोशल मीडिया हिंदी के बखान अथवा हिंदी की खामियों से पटा पङा है। हिंदी  दिवस हम प्रतिवर्ष 14 सितंबर मनाते हैं, क्योंकि 14 सितंबर 1949 को हिंदी  को राज-भाषा घोषित किया। यह तारीख हिंदी के उत्सव के रूप में याद किया जाए। पर इस तारीख को हिंदी के श्राध्द के रूप में याद किया जाता है।
आज के दौर में हिंदी विदेशों में भी जगह बना रही है। विदेशों के कई विश्वविद्यालयों में अब हिंदी को पढ़ाया जा रहा है। यह विश्व समुदाय कि मजबूरी भी है। इस कारण के मूल में है, भारत में उपभोक्ताओं की संख्या का अधिक होना।
आज हम और आप हिंदी में ऑनलाईन कंटेंट देखकर खुश होते हैं कि हिंदी का विकास हो रहा है। बहुत सारे अनुप्रयोग (एप्लीकेशन), यू-ट्यूब पर कंटेंट, मोबाईल और कम्प्यूटर अब हिंदी को बखूबी सपोर्ट कर रहे हैं। गूगल वॉइस असिस्टेंट, सिरी जैसे सॉफ्टवेयर हिंदी पर शोध में बहुत धन भी खर्च कर रहे हैं। इस मामले को हमें और भी बारिकी से देखना चाहिए कि हमारीऔर सरकार की अनदेखी के कारण यह हिंदी उपेक्षित होने लगी है। आज की हिंदी को अपाहिज बना दिया गया है, यदि ऐसे ही चलता रहा हो इस हिंदी को अब चलने के लिए ताउम्र अंग्रेजी नाम कि बैसाखी का सहारा लेना होगा। आज हम हिंदी भी इनपुट कीबोर्ड पर टाईप करते हैं, इसके लिए अंग्रेजा का ज्ञान होना आवश्यक है। कम्प्युटर कि ज्यादातर प्रोग्रामिंग भी विदेशी भाषाओं में हो रही है। तकनीकि रूप से हिंदी को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है, यह जिसकी सही मायनों में हकदार है। हिंदी के कीबोर्ड भी अब स्टैंडर्ड बन कर आम बाजार व मोबाईल तक पहुँच आसान होनी चाहिए। कई बङे अंतरराष्ट्रिय प्रकाशक अब हिंदी में भी पुस्तकें मुद्रित कर रहे हैं। दवाईयों के साल्ट भी अब अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी लिखा जाएगा।
हिंदी के सहयोग का अर्थ कतई भी यह नहीं होना चाहिए कि हम प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अन्य भाषा का दमन या भूल कर करें। भाषाएँ ज्ञान का वाहक रही हैं और भी भाषाओं कि अपनी विशेषता है। कई भाषाओं को सीखना दिमाग के लिए बेहतर व्यायाम माना जाता है। हिंदी को माँ मानने वाले लोगों को यह मान लेना चाहिए कि अन्य भाषाओं का भी दर्जा माँ के ही समकक्ष माना जाता है। इस विश्व गुरू भारत में दुश्मन की भी माँ को खुद कि माँ जितना सम्मान देने की परंपरा रही है। हमें हिंदी का नाम लेकर अथवा हिंदी का हिमायती बनकर अन्य भाषाओं को भी कोसने से बचना चाहिए। कुछ न्यायालय भी हिंदी में कामकाज करने की पहल कर रहे हैं। हिंदी को जन गण की भाषा बनाने के लिए सरकार की इच्छा शक्ति बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदी की ताकत का अंदाजा विदेशियों को हो गया है, वह सीख रहे हैं। हम आज भी अनदेखी ही कर रहे हैं।

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One thought on “अपनों के बीच वजूद तलाशती हिंदी”

  1. बेशक पुरा देश हिन्दी दिवस मना रहा है लेकिन हिन्दी को इसकी जरुरत नहीं है। यह भाषा अपने आप में इतनी समृद्ध है जैसे समंदर

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