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पदयात्रा द्वारा मज़दूरों का पलायन गम्भीर विषय है,परंतु चिंतन का भी…कहावत याद आई, कान में तेल डालना अथवा सुनकर भी अनसुना कर देना। वर्तमान में कुछ ऐसा ही हो रहा है,बहुसंख्यक निर्धन प्रवासी मज़दूरों द्वारा हज़ारों मील पदयात्रा करनी पड़ रही है, इसके चलते न तो इनके लिए कोई यातायात के साधन अभी तक सुलभ हुए, न ही कोई अन्य सहायता,अरे बाबू साहिब आपकी अंतरात्मा को क्या दीमक खा गई…..

ओरंगाबाद में दुर्भाग्यपूर्ण घटना से सोलह व्यक्तियों की कटकर मौत हो गई, आपको इस विषय में कुछ पता नहीं..पता तो थी आपको साहिब पर क्या करते? ट्विटर है ही, ट्विटर तो वर्तमान युग में ऐसा इनके लिए वरदान सिद्ध हुआ कि सभी अभिव्यक्तियों एवं सहानुभूतियों का सशक्त माध्यम यही हो…देश में कुछ भी घटित हो,आपको ट्वीट,रीट्वीट एक से बढ़कर एक अतिश्योक्तियां, शब्दों के बुनेजाल…ऐसे प्रकट होंगे कि मानों शब्दकोश सामने रखकर ही टंकण किया गया हो…अरे साहिब इस ख्याली पुलाव से….औपचारिकता से बाहर आ जाओ…

मुझे साहिब बता सकते हो कि क्या उन मज़दूरों की कीमत सिर्फ उतनी ही थी? कि सोफासेट पर विराजमान होनर…मखमली रुएदार गद्दों पर लेटकर….उन असहाय प्रवासियों के प्रति सूखी सहानुभूति प्रकट करें? घिनआती है,ऐसे व्यक्तियों से…अरे आपको मालूम हो कि गरीब कीचड़ में पैर दो वक्त की रोटी के लिए ही डालता है,जिसका यथार्थ,मौलिक, वास्तविक रूप आमजन ने देखा,जिसे जनता जनार्दन कहा जाता है…अर्थात देश की सारी जनता, जो ईश्वर का रूप मानी जाती है…और आपने प्रवासियों का दर्द ट्विटर पर प्रकट कर दिया…इतना ही बहुमूल्य अंतर है,आप में और जनता जनार्दन में वह सूखी रोटी ही उसका जीवन थी तेईस घण्टों की पदयात्रा करके उसे क्या मिला…एक मौत..जो उसके लिए जीवनचर्या से अधिक मूल्यवान् साबित हुई…

आपकी फ़र्ज़ी सहानुभूतियों की उसको आवयश्कता नहीं…काशआप इतना समझने योग्य होते कि निम्नवर्गीय मज़दूर,गिरमिटिया मज़दूर, प्रवासी मज़दूर वह तो सिर्फ कोल्हू का बैल है,उसे घर चलाने के लिए…रोज़मर्रा का जीवन व्यतीत करने के लिए एक ग्लास पानी,और दो रोटी चाहिए, तन ठापने के लिए वस्त्र, रहने के लिए साधारण झोपड़ी की आवयश्कता होती है,वह पदयात्रा क्यों करता यदि उसको सभी रोजमर्रा की वस्तुएं उपलब्ध होतीं?

साहिब…..आप हैं कि कान पर जूँ तक नहीं रेंगती….उनकी मौत की क़ीमत का आकलन मामूली क़ीमत से लगाया जाता है… मरणोपरांत ही साहिब आपको गरीबों के प्रति प्रतिक्रिया देनी होती है वह भी ट्विटर पर…ऐसा क्यों? इससे पहले हमारे देश के साहिब चैन की नींद सो रहे होते हैं….एक के बाद एक घटना घटित होती हैं…लखनऊ से मध्यप्रदेश के लिए कर्ज़ लेने हेतु अपने वतन पति-पत्नी और उनके दो मासूम बच्चे साइकिल द्वारा यात्रा करतें है, कुछ की मिनटों में मासूम बच्चे, निशब्द बच्चे, यतीम हो जाते हैं ऐसे ही न जाने बहुसंख्यक निम्नवर्गीय मज़दूरों की दुर्भाग्यपूर्ण घटनायें इस वैश्विक महामारी के समय देखने को मिली…

जिसे देखकर कलेजा मुँह को आने लगता है,अरे साहिब जागो,उठो और देखो आखिरकार ये गिरमिटिया मज़दूर, प्रवासी मज़दूर,दिहाड़ी मजदूर,अपने गंतव्य पर क्यों नहीं जा पा रहा? वह क्यों हज़ारो मील पदयात्रा करने को मजबूर है?उसके पीछे क्या नीति है? मैं बताऊं साहिब वह ऐसा क्यों कर रहा है, वह भूखा है…साहिब भूखा..धन का नहीं साहिब दो वक्त की रोटी का… उसके लिए करो कुछ करो साहिब वरना कोरोना संक्रमण से भयानक भयावह तस्वीर ऐसे ही निर्धन व्यक्तियों की…आमजन की होगी…जो ईश्वर का रूप है। कुछ मत सोचों साहिब बस इतना सोचलो ये आपके वोटर हैं साहिब..इन्हें अपने-अपने स्थान पर सुरक्षित भेज दो साहिब…..कोई दो दिन का भूखा है साहिब…कोई महिला गर्भवती है,उसके पैरों में छाले चलते-चलते कोख में दर्द होता है…

वह बेदम है साहिब…और आपकी हमारी तरहं किसी की मां….किसी की बहन…किसी की बहू…किसी की पत्नी है साहिब….इस आपदा की मार हम और आप नहीं इस समय हर एक वह व्यक्ति जो इस तालाबन्दी के कारण बीच रास्ते में फंसा हुआ है, लंबी अवधी के चलते वह यातायात बाधित होने…जेब खाली होने की मार झेल रहा है…ऐसे कष्टों का निवारण शीघ्र हो,सभी को अपना गंतव्य नसीब हो, इस आपदा, महामारी के कारण जन्में भीषण अकाल की कायापलट हो….जाने दो साहिब आप भी कोरोना योद्धाओं की तरहं अपनी अहम भूमिका दिखा दो पुष्प वर्षा कर आपका भी भव्य स्वागत किया जाए…साहिब वाली जनता को 136 करोड़ जनता मुझसे बेहतर जानती है,उनकी सूची अगर गिनाना आरंभ की जाती तो शब्दों की तस्वीर में बाधा उत्पन होती… इस लेख में भी ट्विटर जैसी बाढ़ आ जाती,ट्विटर वाले साहिब ट्विटर को ही मुबारक़।

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One thought on “ट्विटर की हक़ीक़त और प्रवासी मज़दूरों की पदयात्रा को बयान करती शब्दों से बनी एक तस्वीर”

  1. धन्यवाद सर,
    लेख प्रकाशित करने के लिए,

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