मौत आई नहीं फिर भी मारा गया।
खेलने जब जुआ ये नकारा गया।।
हार कर भी कभी होश आया नहीं।
कर्ज लेकर हमेशा दुबारा गया।।
जिसको आदत जुआ की बुरी पड़ गई।
समझो गर्दिश में उसका सितारा गया।।
अब बचा पास मेरे है कुछ भी नहीं।
जो था सुख चैन दिलका वो सारा गया।।
मुझको चंदे का देखो मिला है कफ़न।
कैसे ज़िंदा जनाज़ा हमारा गया।।
हर जुआरी का होता यही हाल है।
जिसने खेला इसे वो बेचारा गया।।
कर दिया इसने बदनाम देखो निज़ाम ।
मैं जुआरी भी कह कर पुकारा गया।।