भोजपुरी भाषा-भाषी क्षेत्र अर्थात उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल और बिहार के लगभग आधे हिस्से में तरह-तरह के गीतों का प्रचलन देखने को मिलता है, इन्हीं गीतों में से एक गीत सोहर भी है । कुछ लोग परिचित होंगे कि यह “जन्मोत्सव का गीत” है अर्थात “सोहर” गीत प्रतीक है कि या तो पुत्र का जन्म हो चुका है या फिर होने वाला है । विशेष रूप से यह गीत तभी गाया जाता है । इस गीत में गर्भधारण के पश्चात और जन्म के उत्सव तक की स्थितियों का वर्णन मिलता है । हमारे यहां परंपरा में यह देखने को मिलता है कि इसकी शुरुआत कहीं न कहीं श्री कृष्ण के जन्म के समय होती है ।
मथुरा में कृष्ण जी जनमले
बधाइयां बाजे गोकुला में हो ललना….
ए ललना नंद घर भइलेे गुलजार
अंगनवा होखे सोहर हो ।
और
मिलिजुली गावे के बधइया
बधइया गावे सोहर हो….
आज कृष्ण के होईहें जनमवा
जगत गाई सोहर हो ।
इस गीत में गांव जवार के आनंद का जो क्षण होता है, उसको भी रेखांकित किया गया है। जन्मोत्सव से जन-जन आह्लादित है ।
गीत देखिए….
गईया के गोबरा मंगाई ला
चउका लीपाई ला हो
मोरे बबुआ के होखॆ ला जनमवा
त सोहर गावेला हो ।
और फिर
सुख होला गउआं सगरिया
त गांव घर शहरिया न हो
मोरे बबुआ के भइल जनमवा
त सोहर गाई ल हो ।
यह गीत बालक के जन्म के उपरांत गाया जाता है । विशुद्ध रूप से इसे शृंगारपरक गीतों की श्रेणी में रखा जाता है । इस गीत में गर्भावस्था के दौरान पारिवारिक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चित्र देखने को मिलता है । स्त्रियों का नईहर प्रेम भी यदा कदा देखने को मिलता है जैसे…
पउआं बाटे भारी मोर
नईहरवा जाईब राजा जी
ससुरा में त रूज्जत नाई होई
मरी मरी जाईब ए राजा जी ।
गीतों द्वारा ही हम इस सोहर गीत की विषय वस्तु से परिचित होते हैं । इसे कहीं कहीं बधाइया भी कहा जाता है । ऐसा माना जाता है कि पुत्र के जन्म के उपरांत *नेग* लेने की जो परम्परा हमारे यहां मिलती है, उसका भी वर्णन देखने को मिलता है …
जैसे…
बधाइयां लेबो कंगना…
बधाइयां लेबो कंगना ए मोरी भौजी ।
केतना ई दिनवा के मनसा ई पुरल
पूरन भईल सपना ए मोरी भौजी ।
जिस प्रकार श्री कृष्ण के जन्म पर जन्माष्टमी में सोहर गाया जाता है उसी प्रकार श्री राम के जन्म रामनवमी में भी सोहर गाया जाता है । सोहर भारतीय संस्कृति में एक संस्कार गीत है और यह गीत गर्भधारण से लेकर जन्मोत्सव तक की स्थितियों को अपने भीतर समेटे हुए हमारे सामने आता है ।
प्रसंग अत्यंत मार्मिक होते हैं और ननद, भौजाई और सास विभिन्न रिश्तो में यह गीत फलता और फूलता है। विषयगत विशेषता के आधार पर हम देख सकते हैं कि तमाम तरह के मार्मिक चित्रों का वर्णन इन गीतो में देखने को मिलता है । एक उदाहरण रखना चाहेंगे जो सोहर गीत परंपरा का एक प्रमुख उदाहरण है । बहुत प्रसिद्धि इस गीत को….।
जुग जुग जियसु ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो
ललना लाल होइहे, कुलवा के दीपक मनवा में आस लागल हो॥
आज के दिनवा सुहावन, रतिया लुभावन हो
ललना दिदिया के होरिला जनमले, होरिलवा बडा सुन्दर हो॥
नकिया त हवे जैसे बाबुजी के, अंखिया ह माई के हो
ललन मुहवा ह चनवा सुरुजवा त सगरो अन्जोर भइले हो॥
इसी प्रकार राम जी के जन्मोत्सव पर भी इस गीत को गाए जाने की परम्परा मिलती है ….
कौशल्या के जन्मे ललनवा
अवध बाजे बजनवा हो 2
दशरथ के जन्मे ललनवा
अवध में बाजे बजनवा ।
स्त्रियों का यह मधुर गीत है जो उनके मानसिक और शारीरिक स्थितियों को भी व्यक्त करता है । इसमें अश्लीलता और शीलता का मिश्रण होता है । चूंकि यह भाषा एक बोली है और अपेक्षाकृत कम पढ़े लिखे लोगों की भाषा में है, इसलिए साहित्य में मर्यादा के पोषक इस पर अश्लीलता का आरोप भी लगा देते हैं , किन्तु यह स्थिति स्त्री के उस समय अर्थात गर्भावस्था के समय के शारीरिक और मानसिक स्थिति का वर्णन है…
फागुन मास सेजिया पर गइली
चईत देहिया भारी भईल हो….
ललना रहरी के दाल न घोटाला
त भात देखी हुली आवे ल हो ।
यह शारीरिक परिवर्तन भी गीतों का वर्ण्य विषय है। जन्मोत्सव के उपरांत माता – पिता, दादा – दादी के हर्ष का कोई ठिकाना नहीं होता ।खुशी से उपहार देने की उनकी दशा का वर्णन भी खूब मिलता है ।
लिहले जनम आज ललना
बधइया घर बाजे ला हो
ललना मंगल होखेला आंगन वा
सुहावन बड़ा लगेला हो ।
और
नन्द बाबा देवे धेनु गईया
लुटावे धन यशोदा मईया हो
जहवां घरे घरे बाजता बधाईया
महल उठे सोहर हो ।
इस प्रकार भोजपुरी की लोक गीत परम्परा में सोहर भी कजरी के समान मधुर गीत है। दोनों ही शृंगारिकता की पृष्ठभूमि में गाए जाते हैं । सावन की शुरुआत तो कजरी से होती है किन्तु इसकी समाप्ति भादो में सोहर से होती है।