हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी हिट और क्लासिक फिल्मों में शुमार मुगल ए आजम का मशहूर गीत जब प्यार किया तो डरना क्या जिस शायर ने लिखा है वो जनाब शकील बदायूँनी थे। शकील ऐसे शब्द चुनते थे सीधे दिल में उतर जाते हैं। यही वजह रही कि उन्हें लगातार तीन बार सर्व श्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। ‘मुगल-ए-आजम’ और ‘मदर इंडिया’ जैसी शानदार फिल्मों में हिट शकील बदायूंनी की कलम का ही कमाल हैं।
चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो
‘चौदहवीं का चांद’ फिल्म का पहला गाना रिकॉर्ड किया जाना था। मगर स्टुडियो में बैठे गुरुदत्त और शकील बेहद बेचैन नजर आ रहे थे। बेचैन होना लाजमी भी था, क्योंकि फिल्म ‘कागज के फूल’ फ्लॉप हो गई थी। इसके बाद गुरुदत्त और आरडी बर्मन की जोड़ी टूट गई। बर्मन दा के बाद रवि ने गुरुदत्त के साथ काम शुरू किया। वहीं दूसरी ओर शकील भी नौशाद का साथ छोड़कर रवि के साथ पहली बार काम कर रहे थे। रवि उन चुनिंदा संगीतकारों में से थे, जिनके गानों की अधिकतर धुन लोगों को पसंद आती थी। बहरहाल, इस बेचैनी के बीच गाना रिकॉर्ड किया गया। फिल्म रिलीज हुई और हिट भी रही। यह 1960 में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी।
शकील को ‘चौदहवीं का चांद’ फिल्म ने बड़ी सफलता दिलाई। उनका लिखा गाना लोगों को बहुत पसंद आया। दिलचस्प बात यह रही कि उन्हें करियर में पहली बार सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए फिल्म फेयरअवॉर्ड मिला। शकील यहीं नहीं रुके, इसके बाद एक से बढ़कर एक हिट गीत लिखे और फिल्मफेयर अवॉर्ड की हैट्रिक लगाई। उन्हें 1961 में ‘चौदहवीं का चांद हो’, 1962 में ‘हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं’ और 1963 में ‘कहीं दीप जले कहीं दिल’ के लिए बेस्ट लिरिसिस्ट का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया।
पहला ब्रेक 1947 में ‘दर्द’ फिल्म में
शकील के फिल्मी दुनिया के सफर पर नजर डालें, तो उन्हें पहला ब्रेक 1947 में आयी फिल्म ‘दर्द’ में मिला। नौशाद साहब की धुन में लिखे गाने ‘अफसाना लिख रही हूं दिले बेक़रार का, आंखों में रंग भरके तेरे इंतज़ार का’ काफी हिट हुआ। शकील ने नौशाद साहब के साथ 20 साल से भी ज्यादा काम किया था। 1951 में ‘दीदार’ फिल्म में नौशाद-शकील की जोड़ी ने कमाल कर दिया। ‘बचपन के दिन भुला न देना, आज हंसे कल रुला न देना’ गाने ने धूम मचा दी थी। इस तरह शकील आवाम की पहली पसंद बन गए।
सरकारी नौकरी छोड़कर बंबई गए
शकील बदायूंनी का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में 3 अगस्त 1916 को हुआ। वो बचपन से ही शायरी का शौक रखते थे। वर्ष 1936 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। इसके बाद उन्होंने मुशायरों में हिस्सा लेने का सिलसिला शुरू किया। स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद वो सरकारी नौकरी में आए। मगर वो दिल से शायर ही रहे। इसके बाद 1944 में वो मुंबई चले गए। मुंबई पहुंचकर उन्होंने संगीतकार नौशाद साहब की सोहबत में कई मशहूर फिल्मों के गीत लिखे।
11 ग्यारह बार फिल्म फेयर अवार्ड
इनमें मदर इंडिया, चौदहवीं का चांद और ‘साहब बीवी और गुलाम, मेला, दुलारी,, मुगले आजम, गंगा जमुना जैसी कई फिल्मों के लिए गीत लिखे। उनके लिखे सदाबहार गीत आज भी हिट हैं। शकील बदायूंनी को 11 ग्यारह बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया।
हिंदी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ चुके इस शायर ने 20 अप्रैल 1970 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
यादगार नग्मे
1 कदम कदम बढ़ाए जा
2 बेकरार करके हमें यूं ना जाइए
3 इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चलके
4 कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
5 मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम
6 नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं
7 आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज न दे
8 अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं
9 दिल लगा के हमने जाना जिंदगी क्या चीज है
10 भरी दुनिया में आखिर दिल को बहलाने कहां जाएं
#ShakeelBadayuni