बाज़ुओं के दम पर
भूख की हर चुनौती को
दरकिनार किये रहता था
क़ुसूर बस इतना कि
गाँव छोड़
दूर शहर में रहता था
बे मौसमी प्रचंड 
कोरोनाई धूप में 
ज़रा सी
छांव की चाह में
मर गया चलते चलते
अपने गाँव की राह में
अधीन नहीं था
पराधीन नहीं था
फिर भी
ग़जब सीन हो गया
क़ैदियों की भाँति
विचाराधीन हो गया
ख़ाली खुली 
सड़क भी 
सेलुलर जेल हो गई
ना जुर्म, ना कोर्ट
ना कचहरी
ना मुक़दमा
ना कोई सुनवाई

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