आज उदय प्रताप कॉलेज के राजर्षि सेमिनार हाल में हिंदी विभाग द्वारा ‘किस्सागोई बनाम कथा-लेखन’ विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस विशेष व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित कथाकार अलका सरावगी ने की कहा कि किस्सागोई कहानी का प्राण है और एक ऐसी कला है जिससे कहानी सुनते समय हमारा ध्यान कहीं और नहीं जाता। उन्होंने यह भी कहा कि कहानी लिखने का कोई एक तरीका नहीं होता और समय के साथ कथानक में भी बदलाव आया है। उन्होंने अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘कलिकथा वाया बाईपास’ की कथा की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें आने वाली कहानी एक तरह से कथा का इतिहास है। साथ ही आज का विकास किस तरह हमारी परंपराओं का विनाश कर रहा है इसे कलिकथा बाय बाईपास में दिखाया गया है जिसमें एक प्रवासी के विस्थापन की यंत्रणा है। इसे नास्टेल्जिया कहा जाता है। अलका सरावगी ने अपने नवीनतम उपन्यास ‘गांधी और सरला देवी चौधरानी : बारह अध्याय’ की चर्चा करते हुए कहा कि सरला देवी चौधरी स्त्री मुक्ति की पुरखिनि थीं। उनके और गांधी जी के बीच लगभग 1 वर्षों तक चले रागात्मक रिश्तों के संबंध में कहा कि राष्ट्रपिता को एक मनुष्य के रूप में देखने की जरूरत है न की देवता के रूप में। एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि लेखक को अपना सच कहने की आजादी होनी चाहिए, क्योंकि उसके लेखन का मुख्य उद्देश्य बेहतर मनुष्य का निर्माण करना होता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. बलिराज पांडेय ने कहा कि कहानी में चाहे जितना परिवर्तन आ जाए लेकिन किस्सागोई कहानी का अनिवार्य धर्म होता है। यह किस्सा गोई ही पाठक को कहानी पढ़ने के लिए आमंत्रित करती है। उन्होंने आगे कहा कि अलका सरावगी की रचनाओं का मूल भाव स्वतंत्रता है। वह अपनी रचनाओं में विस्थापन, सांप्रदायिकता जैसी बड़ी समसामयिक समस्याओं को केंद्र में बनकर चलती हैं। उन्होंने आगे यह भी कहा कि आज का समय हमारे लिए आत्मनिरीक्षण का समय है। जो रचनाकार हमारे समय के बड़े सवालों से टकराता है वही मनुष्यता की रक्षा कर सकता।
आज के इस आयोजन में आए हुए अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. धर्मेंद्र कुमार सिंह ने किया तथा संचालन प्रो. गोरखनाथ ने किया। आभार ज्ञापन प्रो. मधु सिंह ने किया। इस अवसर पर डॉ. राम सुधार सिंह, डॉ. एम.पी. सिंह, प्रो. चंद्रकला त्रिपाठी, प्रो. शाहीना रिजवी, प्रो. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, श्री रत्न शंकर पांडेय, श्री शिवकुमार पराग, प्रो.एन.पी.सिंह, प्रो. सुधीर राय, प्रो. नीलिमा सिंह, प्रो. शशिकांत द्विवेदी, प्रो. प्रज्ञा परमिता, डॉ. मोहम्मद आरिफ, प्रो. रमेशधर द्विवेदी, डॉ. अरविंद कुमार सिंह, प्रो. सुधीर कुमार शाही, प्रो. मनोज प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. गरिमा सिंह, प्रो. वंदना मिश्रा, प्रो. मीरा सिंह, प्रो.अंजू सिंह, प्रो. राजीव रंजन सिंह, प्रो. पी. के. सिंह, प्रो. अलका रानी गुप्ता, डॉ. प्रीति जायसवाल, प्रो. पंकज कुमार सिंह, प्रो. रश्मि सिंह, डॉ. उपेंद्र कुमार, प्रो. अनिता सिंह, डॉ. बिपिन प्रकाश सिंह, डॉ. तुषार कांत श्रीवास्तव, डॉ. उदय शंकर, डॉ. राजीव सिंह, डॉ. आनंद राघव चौबे, डॉ. रूबी सिंह, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. सपना सिंह, डॉ. रंजना श्रीवास्तव, डॉ. जितेन्द्र सिंह, डॉ. शशिकांत सिंह, डॉ. अनुराग उपाध्याय, डॉ. अशोक कुमार सिंह, डॉ. संजय स्वर्णकार, डॉ. चंद्र शेखर सिंह, डॉ. सुनील कुमार सिंह, डॉ. अग्नि प्रकाश शर्मा, डॉ. पुष्पराज शिवहरे, डॉ. विजय सिंह, डॉ. श्वेता सोनकर, डॉ. विनोद पाल, डॉ. विकास सिंह, डॉ. वंश गोपाल यादव, डॉ. शिवम कुमार सिंह तथा बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।