Masoom mohabbat

शहर में रात से ही मूसलाधार बारिश हो रही थी।सुबह भी थमने का नाम न ले रही थी।
उसने बैचेनी से घड़ी की तरफ देखा।सुबह की सैर का वक्त हो गया था।उसे पता था वो छत पर खड़ी उसयुवक बारहवीं कक्षा का होनहार छात्र था।मध्यम वर्गीय परिवार से पिता शिक्षक थे तथा मांँ गृहिणी थी।
उसके ज्यादा मित्र न थे।अधिकतर वह किताबों में ही खोया रहता।परंतु एक सुबह  उद्यान में वह दिख गयी।उसकी सहेली भी साथ थी।एक बार नजरें मिली।उसे थन्डर बोल्ट की अनुभूति हुयी।किशोरावस्था थी।यह पहला अनुभव ।
फिर उसे पता चला गुलमोहर कालोनी में रहती है।पिता पुलिस विभाग में अफसर और माता सामाजिक कार्यकर्ता थी।घर का वातावरण पूर्ण अनुशासित था।माता पिता की ईकलौती संतान थी।लाड प्यार के बावजूद बहुत कठोरता से परवरिश की गयी थी।
यह कालोनी उसे सुबह की सैर के समय राह में ही पड़ती थी।जब भी वह निकलता उसे एक किताब लिये छत पर खड़ी पाता।ठीक आधे घंटे बाद वह लौटता तो भी वहीं खड़ी पाता।
इस तरह से नजरों से नजरों का मौन संवाद चल पड़ा।
उन दिनों फोन वगैरह उपकरण नहीं थे।कबूतर के बाद का जमाना चिट्ठी या फूल।
एक बार उसकी एक सहेली जो कामन फ्रैंड थी,उसके हाथों लाल गुलाब का फूल भेजा था।बाद में पता चला,फूल लेकर वह रो पड़ी थी।बस ,तबसे नजरों का खेल चल पड़ा था.सहेली ने वादा किया था कि एकबार दोनों की मुलाकात करायेगी।
बारिश थोड़ी कम हुयी तो उसने साईकिल निकाली।वह बाहर निकला तो माँ ने टोका,-“कहाँ जा रहा है,बेटा भीग जायेगा?”
वह यह सब कहाँ सुन रहा था,वह समय की गति देख रहा था-“माँ,एक दोस्त से जरूरी नोट्स लेने जा रहा हूँ।”
उसके पैर साईकिल के पैड़ल पर तेजी से चल रहे थे।आँखों में बस वो ही नजर आ रही थी कि वह छत पर ईंतजार कर रही होगी।
बारिश तेज हो गयी थी।पर,उसके कदम नहीं थमे।तेज गति से वह उड़ चला।

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