Kakori kand

नौ अगस्त उन्नीस सौ पच्चीस,

काकोरी रेलवे स्टेशन,

जैसे ही चली सहारनपुर पैसेंजर,

हुई चेनपुलिंग,

रुकते ही ट्रेन गार्ड को क्रांतिकारियों ने

लिया कब्जे में,

लूटना था सरकारी खजाना,

हड़बड़ी में निरुद्देश्य चल गयी माउज़र,

मरा एक रेल पैसेंजर,

लोग कांपे थर थर,

हां जितना मिला

लूट भागे क्रांतिकारी,

थी गज़ब की दिलेरी,

देश की आज़ादी के

क्रांति अभियान की

खातिर थी धन

की महती आवश्यकता,

बहादुरों नें जान की बाजी लगा

साहसिक अभियान पूर्ण किया,

बौखला गयी अंग्रेजी हुकूमत,

सरगर्मी से तलाश अभियान जारी,

पकड़ा चालीस क्रांतिकारी,

चला मुकदमा,

प्रमुखतयः बिस्मिल,अशफ़ाक़ उल्ला

एवं अन्य दो और लोगों को मिली फांसी,

चन्द्रशेखर एवं अन्य तिलमिलाए,

जेल से ही उपजा गान,

मेरा रंग दे बसंती चोला,

जिसने क्रांति को दिए नए आयाम,

अंततः आज़ाद हुआ

हमारा हिन्दोस्तान,

नमन, वंदन

उन क्रांति पुंजों को

जिन्होंने हंसते, हंसते

गंवा दिए अपने प्राण,

बन गए भारत मां

का अभिमान,

उन पुण्य आत्माओं को

कोटिशः प्रणाम।।

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