poem chandani raat

ओढ़कर प्यार की चुनरिया,
चांदनी रात में निकलती हो।

तो देखकर चांद भी थोड़ा,
मुस्कराता और शर्माता है।
और हाले दिल तुम्हारा,
पूछने को पास आता है।
हंसकर तुम क्या कह देती हो,
की रात ढलते लौट जाता है।।

चांदनी रात में संगमरमर,
की तरह तुम चमकती हो।

रात की रानी बनकर,
पूरी रात महकती हो।
और हर किसी को,
मदहोश कर जाती हो।
और धरा पर प्यार के,
मोती बिखर देती हो।।

अपनी मोहब्बत से तुम,
सब को लुभाती हो।

काली रात में भी,
चांद को मिलने बुलाती हो।
भूल जाती हो प्यार में,
की पुर्णिमा को चांद आएगा।
और पूरी रात तुम्हे,
दिल से लगाएगा।।

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