bharosa nahi

लूटकर सब कुछ अपना,
तेरी शरण मे आया हूँ।
अब दवा दो या ये जहर,
ये तेरे पर निर्भर करता है।
तेरी रहमत पर ही जिंदा हूँ,
इसलिए तेरा आभारी हूँ।
और जिंदगी को अब,
धर्मानुसार जी रहा हूँ।।

न कोई किसी का होता,
न कोई रेहम करता है।
मिलता जिसको भी मौका,
क्या अपना और पराया।
वो किसी को भी,
लूटने से नहीं चुकता है।
और धन को महत्व देकर,
रिश्तों को भूल जाता है।।

आज-कल इंसान,
जानवरों से कम डरता है।
पर इंसानों से सबसे ज्यादा,
खुद इंसान डरता है।
क्योंकि अब इंसान और,
इंसानियत पूरी मर चुकी है।
इसलिए वो अब अकेला,
जीना पसंद कर रहा है।।

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