pariwar

ऐसा भी होगा
शायद किसी ने
सोचा भी न होगा,
परिवार बिखर ही नहीं रहे
मोह,ममता भी जैसे मर रहे
संवेदनाएं जैसे
दम तोड़ रही हैं
परिवारों में भी किसी को
किसी की फिक्र ही नहीं है।
हर रिश्ता स्वार्थ पर
जाकर ठहर रहा है,
माँ, बाप, बेटा ,बेटी,
भाई, बहन में भी
स्वार्थ का रंग चढ़ रहा है।
किसी को किसी की जैसे
फिक्र ही नहीं रही,
स्वार्थ की हाँड़ी देखिए
सबके सिर पर है चढ़ी।
प्यार, दुलार, लगाव,ममता की
बात करना क्या सोचना भी
बेईमानी सा लगता है,
किसी की फिक्र, चिंता, भलाई
अब किसे किसकी पड़ी है।
अपने ही अपनों के लिए
दुश्मन बन रहे हैं,
रिश्ते नाते भी अब
औपचारिक हो रहे हैं।
बिखर रहे परिवार तो
प्यार तो बिखरेगा ही,
जब परिवार परिवार ही नहीं रहा
तो प्यार कहाँ होगा जी?

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *