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निर्माता : ब्रम्हानंद एस सिंह और आनंद चैहाण
निर्देशक : ब्रम्हानंद एस सिंह और तनवी जैन
कलाकार : बोमन ईरानी,तनिष्ठा चटर्जी, संजय सूरी, जौयसेन गुप्ता, दिव्या दत्ता, गोविंद नाम देव,यतिन कर्येकर, अखिलेंद्र मिश्रा, बचन पचेरा, बाल कलाकार आरती झा और गोरक्षा सकपाल व अन्य

‘बचपन बचाओ’ का संदेश देने के लिए नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के कार्यों से प्रेरित होकर ब्रम्हानंद एस सिंह और तनवी जैन फिल्म ‘‘झलकी’’ फ़िल्म का निर्माण किया है। यह फ़िल्म अब टेलीग्रामपर भी उपलब्ध है। बात करें फ़िल्म की तो निर्देशक ने एक बाल मजदूर जैसे अति गंभीर विषय पर अपनी तरफ ध्यान खींचने का गम्भीर प्रयास किया है, मगर विषयवस्तु को लेकर सीमित सोच के चलते फिल्म अपना प्रभाव ज्यादा नहीं जमा पाती।

फिल्म की कहानी गौरया नामक चिड़िया की एक पुरानी लोककथा के एनपीमोन से शुरू होती है। गौरैया, जिसका एक दाना बांस की खोल में फंस जाता है, जिसे पाने के लिए वह बढ़ई, राजा, उसकी रानी, सांप, एक छड़ी, आग, समुद्र और एक हाथी तक गुहार लगाती है। हाथी तक पहुंचने से पहले सभी उसे भगा देते हैं। मगर जब हाथी उसकी मदद के लिए उसके साथ चलता है, तो सभी मदद के लिए तैयार हो जाते हैं और गौरैया को उसका दाना मिल जाता है।

फिर मूल कहानी शुरू होती है। कहानी है उत्तर प्रदेश के एक गांव से रामप्रसाद (गोविंद नामदेव) बच्चों को श्रम के लिए खरीदकर शहर में ले जाता है। इसके लिए वह बच्चों के गरीब माता पिता को एलईडी टार्च या एफएम रेडियो अथवा कुछ पैसे देकर उनकी भलाई का नाटक भी करता है। पर उसी गांव की एक नौ साल की लड़की झलकी (आरती झा) को रामप्रसाद पसंद नहीं। वह हर हाल में अपने छोटे भाई सात साल के बाबू (गोरक्षक सकपाल) को रामप्रसाद से बचाकर रखना चाहती है। पर हालात कुछ इस तरह बदलते है कि राम प्रसाद के साथ झलकी और उसका भाई बाबू मिर्जापुर शहर पहुंच जाते है, जहां रामप्रसाद बड़ी चालाकी से उसके भाई बाबू को बाल मजदूरी के लिए दूसरों के हाथ बेच देते हैं और झलकी को किसी अन्य के हाथ वेश्यावृत्ति के लिए बेचते हैं। झलकी अपने भाई बाबू से अलग हो जाती है, पर वह भागकर खुद को बचा लेती है। फिर वह अपने भाई बाबू की तलाश करती है। कारपेट बनाने वाली फैक्टरी के मालिक चकिया (अखिलेंद्र मिश्रा) के यहां बाबू कारपेट बनाने के काम में लग जाता है। अपने भाई बाबू की तलाश के लिए झलकी गौरैया की कहानी को याद कर अपने काम पर लग जाती है। उसे सबसे पहले साथ मिलता रिक्शा वाले चाचा का जिसे सब सच पता है। इसके बाद झलकी राजा यानी कि जिले के कलेक्टर के पास पहुंचती है, संजय उसे भगा देते हैं। तब वह नाटकीय तरीके से रानी यानी कि कलेक्टर की पत्नी सुनीता (दिव्या दत्ता) से मिलती है। सुनीता उसे अपने घर ले जाकर अपने साथ रहने के लिए कहती है और आश्वासन देती है कि वह जल्द उसके भाई को खोजवा देंगी। उधर रहीम चाचा की मदद से झलकी को यह पता चल जाता है कि उसके भाई बाबू से कारपेट बनाने वाली कंपनी के मालिक चकिया बाल मजदूरी करा रहे हैं। एक दिन जब वह छिपकर कंपनी के अंदर पहुंचती है तो वह कलेक्टर संजय के ज्यूनियर और एसडीएम अखिलेश(जौयसेन गुप्ता) को चकिया से घूस लेते देख लेती है। पर संजय चुप रहते हैं। उसके बाद नाटकीय तरीके से पत्रकार प्रीति व्यास (तनिष्ठा चटर्जी) और बच्चों को छुड़वाने काम कर रहे समाज सेवक (बोमन ईरानी) की मदद से झलकी अपने भाई व गांव के अन्य बच्चों का बाल मजदूरी से मुक्त कराकर अपने गांव पहुचती है।

कहानी खत्म होने के बाद कैलाश सत्यार्थी का लंबा चौड़ा भाषण और उनके द्वारा 86 हजार बच्चों को छुड़ाए जाने के दौरान के उनके कार्यों का वीडियो भी आता है।

मूलतः डाक्यूमेंट्री फिल्मकार ब्रम्हानंद एस सिंह की बतौर निर्देशक यह पहली फीचर फिल्म है, जिसमें उनके साथ निर्देशन में सहयोगी के रूप में तनवी जैन भी जुड़ी है। ब्रम्हानंद एस सिंह ने संगीतकार आर डी बर्मन और गजल गायक जगजीत सिंह लंबी डाक्यूमेंट्री बना चुके हैं। जिसका असर फिल्म में इंटरवल से पहले नजर आता है। इंटरवल से पहले जिस तरह से दृश्य व पार्श्व में गाने पिरोए गए हैं, उससे फीचर फिल्म् की बजाय डाक्यमेंट्री का अहसास होता है। इंटरवल के बाद घटनाक्रम घटित होते हैं। पर पटकथा में कुछ झोल के साथ निर्देशन में कुछ कमियां है। फिल्म बेवजह लंबी खींची गयी है।

फिल्म में बच्चों के यौन शोषण को भी बहुत हलके फुलके अंदाज़ से दिखाया गया है। फिल्मकार के रूप में ब्रम्हानंद ने बाल मजदूरी के साथ जुड़े हर इंसान को बेनकाब करने का प्रयास किया है। फिल्म में भाई की तलाश में जुटी झलकी के अंदर के गहरे डर का भी बेहतरीन चित्रण है। कालीन बुनाई के लघु उद्योग में किस तरह छोटे छोटे बच्चे काम कर रहे है और उन्हें किस हालात में रखा जाता है, उसका यथार्थ चित्रण है।

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो झलकी के किरदार में बाल कलाकार आरती झा अपने शानदार अभिनय से मन मोह लेती हैं। गोरक्षा सकपाल ने भी बाबू के किरदार के साथ न्याय किया है। यह दोनों भाई-बहन के रूप में एक अद्भुत, वास्तविक किरदार बनाते हैं। फिल्म में बेहतरीन कलाकारों की लंबी चौड़ी फौज है, मगर पटकथा लेखन व निर्देशकीय कमजोरी के चलते यह कलाकार बंधे से नजर आते हैं। कोई भी खुलकर अपनी प्रतिभा को सामने नहीं ला पाता।

हमारे देश की दुर्दशा करने वाले सभी मुद्दों में से, शायद सबसे ज्यादा दिल दहला देने वाला है बाल श्रम और दुर्व्यवहार। आठ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को बेच दिया जाता है और 14 से 15 घंटे तक अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। जबकि ऐसे कानून हैं जो इस प्रथा का अपराधीकरण करते हैं, ज्यादातर अन्य जघन्य कृत्यों की तरह, यह अक्सर टूटी-फूटी और भ्रष्ट व्यवस्था की वजह से अनियंत्रित हो जाता है। ब्रह्मानंद की फिल्म झलकी इस दुखद परिदृश्य को देखती है।

आरती झा, संजय सूरी, दिव्या दत्ता, तनिष्ठा चटर्जी और बोमन ईरानी द्वारा अभिनीत फिल्म – बंधुआ मजदूरी और बाल शोषण पर कड़ी नज़र रखने की कोशिश करती है लेकिन इसे धरातल पर लाने में विफल रहती है। दो घंटे की फिल्म का पहला भाग अच्छी तरह से सेट है। झलकी और बाबू की परिस्थितियों के बारे में विस्तार से पता लगाया गया है और बाल कलाकार दर्शकों की सहानुभूति अर्जित करने का अद्भुत काम करते हैं। लेकिन दूसरा हाफ हार्ड हिटिंग छाप छोड़ने में नाकाम रहा।

यह अनुमानित कहानी है जो फिल्म की प्रभावशीलता के खिलाफ काम करती है। आप बता सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है लेकिन फिल्म का प्रदर्शन और तेज गति आपको एक झटके में उम्मीद से भर देती है। इस तरह के संवेदनशील विषय से निपटने के दौरान, जो दर्शकों के लिए हमेशा दिमाग से ऊपर नहीं होता है, यह यथार्थवादी होने के लिए पर्याप्त नहीं है।

फिल्म का दूसरा भाग भी कहानी के माध्यम से चलता है, जिसमें कई सुविधाजनक घटनाक्रम हैं। झलकी की सभी बाधाएँ – जैसे सरकार, भ्रष्टाचार, सार्वजनिक सुरक्षा की कमी, संसाधनों की कमी – एक पत्रकार और एक कार्यकर्ता की उपस्थिति के साथ आसानी से बह गए हैं। जबकि एक उम्मीद की कहानी के लिए समझ में आता है, यह कहानी के संदेश से समझौता नहीं करना चाहिए। छायांकन सावधानीपूर्वक किया जाता है, जितना संभव हो उतना प्रामाणिक होने के इरादे से। संवाद के माध्यम से प्रामाणिकता भी दिखाई देती है। लेकिन फिल्म के तकनीकी पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया है जो कि कथा में परिलक्षित होता है।

रेटिंगःढाई स्टार

झलकी मूवी ट्रेलर:

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