कल मजदूर दिवस था. यह दिन पूरी दुनिया में श्रम सुधारों को समर्पित है. वैसे तो इसका आधार फ्रेंच रिवोल्युशन और अमेरिका में हुए श्रमिक आंदोलन हैं. लेकिन भारत में इसका इतिहास कम पुराना नहीं है. हिंदुस्तान में सबसे पहला श्रमिक दिवस 1 मई 1923 को लेबर किसान पार्टी ने चेन्नई में मनाया था. वैसे यह दिन गुजरात और महाराष्ट्र राज्य की स्थापना (21 मई 1960) के रूप में भी मनाया जाता है. औद्योगिकीकरण के शुरुआती दौर में कार्यस्थल पर मज़दूरों का शोषण आम बात थी. 15 -15 घंटे काम.  कार्यस्थल पर कोई भी मानवीय सुविधा भी उपलब्ध नहीं थे, ऋण के बदले वंश दर वंश मुफ्त में काम, श्रमिको का मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न जैसी विषम परिस्तिथियाँ थी. उन्हें समानता और स्वतंत्रता, संघ बनाने या अपनी बात डेमोक्रेटिक तरीके से रखने से का कोई अधिकार नहीं था. इसीलिए 1 मई 1886 को इन अमानवीय परिस्तिथियों और कार्यस्थल पर अन्याय के खिलाफ अमेरिका में हयमार्केट अफ़ेयर के कारण सभी मजदूर वर्ग एकजुट हो गये. उन्होंने बेहतर कार्यस्थल, छुट्टी दिवस, काम के घंटे निश्चित करना (8 घंटे), बेहतर कार्यस्थल, बेहतर मजदूरी की मांग का सफलतापूर्वक आंदोलन किया. जिससे कि पूरी दुनिया में श्रम सुधारों की नींव पड़ी परन्तु भारत के सन्दर्भ में जब हम बात करते हैं तो इसमें श्रमिक संगठन, पार्टियों लेबर किसान पार्टी, लेबर पार्टी जिनकी स्थापना बाब साहेब भीम राव आंबेडकर ने किया था. (15 अगस्त 1936) बाब साहेब भीम राव आंबेडकर ने स्थपित किया था. जब भी भारत में चमार का जिक्र होगा मानव अधिकार, महिला अधिकार, मजदूरों के अधिकार, मौद्रिक नीतियां का जिक्र होगा आंबेडकर जी समसामयिक हो जायेंगे. सत्ता कोई भी हो वो समसामयिक होंगे. जब भी एक
समतामूलक, समतावादी, सर्वश्रेष्ठ देश या समाज की बात होगी आंबेडकर समसायिक हो जायेंगे. क्युकी वे अकेडमिक और विसनरी लीडर हैं! वैसे भारत में ब्रिलियंट नेतृत्व रहे हैं और हैं भी लेकिन वो सभी किसी एक नीति या विषय के विशेषज्ञ या ज्ञानी रहे हैं. लेकिंन, आंबेडकर कई विषयों और नीतियों के विशेषज्ञ थे. फिर वो चाहे फिलॉसफी हो, इकोनॉमिक्स हो, सोशियोलॉजी हो, या लॉ ही क्यों न हो. इसीलिए आज के समय में जब श्रम सुधारों की बात होती है तो उनके विज़न पर ही बात होती है. इस संबंध में  भारत सरकार के प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो और भारत सरकार ने 1991 और 2015 में उनके विज़न के ऊपर बुकलेट और पुस्तकों का प्रकाशन “Dr. B. R. Ambedkar Labour Welfare and Empowerment: Initiatives to Make his Vision a Reality” 2015 में और “Dr. B. R. Ambedkar-Labour Welfare and Empowerment: Initiatives to Make his Vision a Reality” 1991 में जो फिर से रीप्रिंट होकर 2014 में भी
आयी ! उनके विज़न के अनुसार & quot ; Nationalism, a Means to an End Labour’s creed is internationalism. Labour is interested in nationalism only because the wheels of democracy—such as representative Parliaments, responsible Executive, constitutional conventions, etc.—work better in a community united by national sentiments. Nationalism to Labour is only a means to an end. It is not an end in itself to which Labour can agree to sacrifice what it regards as the most essential principles of life.—from Dr. Ambedkar’s Broadcas on All India Radio, Bombay in December 1942." है. और वो यह बात आज़ादी के बाद नही बल्कि पहले भी उठाते रहे हैं. कहते रहे हैं. जैसा की, सर्वविदित है की वो वाइसराय एग्जीक्यूटिव कौंसिल में लेबर मेम्बर भी थे (1942-1946) भी थे. उन्होंने श्रम सुधारों में सिर्फ उन्होंने काम के घंटे या बेहतर काम जोखिम पूर्ण कार्यस्थल की ही बात नही की बल्कि हेल्थ और मनोरंजन की सुविधाएं, साथ  ही कई फाइनेंसियल लाभ और इंश्योरेंस की भी वकालत की. उन्होंने भारत में सिर्फ काम के आधार पर वर्ण की बात नहीं मानी बल्कि काम के विभाजन में जातियों की बात और विभिन्न स्तरों पर श्रमिकों के बीच इस आधार पर भेद भाव की बात को भी रखा, इसलिए वो कम्युनिस्ट लेबर मूवमेंट के थोड़े आलोचक भी रहे. ये विचार उन्होंने एनहिलेशन ऑफ कास्ट नामक पुस्तक में लिखा भी है. सोशलिस्ट पार्टी के सहयोग से उन्होंने 1938 में उस समय का सबसे बड़ा प्रदर्शन भी उन्होंने इस इशू पर कोंकण से बॉम्बे तक किया था! तथा बॉम्बे लेजिस्लेटिव असेंबली में बिल का विरोध भी किया. भारत के संविधान में मैग्ना कार्टा अर्थात मानव अधिकारों को लाने का श्रेय भी संविधान के पार्ट-3 और आर्टिकल 14 से लेकर 35 तक उन्हीं को जाता है. आर्टिकल-14 अर्थात सभी को स्वतंत्रता एवं समानता, आर्टिकल 15 के द्वारा सभी प्रकार के भेद भाव से मुक्त समाज, आर्टिकल 16 कम करने के मामले में सभी प्रकार के भेदभाव सभी सधारों आधरों वंश, जाती, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव को खत्म करना, आर्टिकल-18 के द्वारा सभी प्रकार की पदवियों का अंत, आर्टिकल 19 के द्वारा स्वतंत्रता और भयमुक्त होकर अपनी बात रखना, साथ संघ बनाने की स्वतंत्रता, अपनी मांग या बात को पहुंचाने हेतु माध्यम को चुनने की स्वतंत्रता, आर्टिकल-21 के द्वारा प्राण और दैहिक स्वतंत्रता इत्यादि सभी वर्ग के अधिकारों की रक्षा करता है. देखिये, समानता के बिना, समान आर्थिक अवसरों के बिना समृद्धि और शांति की कल्पना नहीं हो सकती है. आंबेडकर यह समझते थे. वैसे भी यह सर्वविदित है की अपेक्षाकृत शांति वही होती है जहां आर्थिक रूप से समान और समृद्ध समाज होता है. इसीलिए बाब साहेब को हम सभी को ग्लोबल विजनरी लडिरशिप के रूप में हमे देखना चाहिए. महिलाओं के लिए सिविल यूनिफार्म लॉ की बात हो, उनके लिए वेलफेयर लेजिस्लेशन की बात हो, सबको पैतृक संपत्ति में अधिकार की बात हो, सबको मतदान के अधिकार की बात हो, जिसे उन्होंने 1918 में साउथ बोररो कमेटी में रखा था.
महिलाओं के लिए बेहतर और भयमुक्त कार्य-स्थल और कार्य-संस्कृति की बात हो या सह शिक्षा की बात हो, मातृत्वा लाभ की बात हो उन सभी पर उन्होंने बात की समाधान भी दिया उनमें से बहुत सारे मुद्दों  को संविधान के माध्यम से हल भी किया. और अगर आज उन पर बात भी हो रही है तो वो आज भी प्रेरणा के एक मजबूत स्रोत की भांति याद किये जाते हैं कोट किये जाते हैं. उनको सिर्फ लेबर एक्सपर्ट मानना या सोशल वेलफेयर लेजिस्लेशन का एक्सपर्ट मानना उनके विज़न को छोटा करना ही होगा. उन्होंने अपने थीसिस प्रॉब्लम ऑफ़ रुप्पी मौद्रिक नीतियों को रखा ! आज जब हमे मौद्रिक नीतियों के बारे में कही अवमूल्यन की बात करें या नियंत्रित करने की तो उनके साजेशन की छाप अस्पष्ट रूप में दिखती है. उनके हिल्टॉन एंड यंग कमिशन उनके हिल्टॉन एंड यंग कमिशन (1926-1935) में दी गयी रिकमन्डेशन के आधार पर ही भारत की सबसे बड़ी बैंकिंग संस्था रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थापना हुई. शरद पवार जी ने फूड सिक्योरिटी बिल पर बहस करते समय स्वीकार किया कि इसमें आंबेडकर जी का ही विज़न काम कर रहा है. NDA के शासन में जन वितरण प्रणाली हो या अंत्योदय की बात हो वहां इनके विज़न को स्वीकारिता मिली है. वैसे भी इक्वलिटी, फ्रटर्निटी, लिबर्टी की बात को उठाना और प्रैक्टिकल रूप लागु करना ही तो सच्ची डेमोक्रेसी है. वो यहाँ तक ही नहीं रुके उन्होंने हेल्थ और हाइजीन के इशू और इसके कारण हो रही हानि को भी उठाया. उनके बारे में संविधान में पार्ट- 4 आर्टिकल 36-51 के द्वारा स्टेट को जिम्मेदार बनाने का प्रयास किया.
आज जब हम महामारी के दौर में हेल्थ और हाइजीन की बात कर रहे हैं उनको सबसे ज्यादा प्रायोरिटी देने की बात कर रहे हैं, उन पर बाबा साहेब काफी पहले कहा करते थे. उनके विज़न से दुनिया के कई लीडर प्रेरणा लेते हैं, उनको अपनी नीतियों में स्थान दे रहे हैं. इसीलिए जब बराक ओबामा इंडिया आते हैं तो उनको सम्मान स्वरुप याद करते हैं. उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इसलिए ही गूगल उनके 124 वीं वर्षगांठ पर डूडल बनाता है और जिसे इंग्लैंड, सीरिया, Argentina, chilly, Ireland जैसे देशों में दिखाया जाता है. उनके आउट ऑफ़ थे बॉक्स थिंकिंग की प्रशंसा कई प्रख्यात अर्थशास्त्री जैसे की नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्यसेन जैसे और भी कई अर्थशास्त्री करते हैं. सेन तो उनको वेलफेयर इकोनॉमिक्स में उनको इंडिया में फादर की संज्ञा तक दे देते हैं. न्यूज़ 18 जब इंडिया के ग्रेटेस्ट व्यक्ति के हेतु वोट
करता है तो अंबेडकर सबसे ज्यादा वोटों से सबसे लोकप्रिय व्यक्ति साबित होते हैं. हालाँकि इसमें गांधी जी को नही रखा गया था. यहां तक कि यूनाइटेड नेशन भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करने के लिए उनके 125 वे बर्थडे को दुनिया से असमानता खत्म करने संकल्प के रूप में   संप्रेषणीय  विकास  के प्रमुख लक्ष्य को मानते हुए मनाती है! वही 2018 में उनके जन्मदिन को “no one behind” के लक्ष्य के रूप में मनाया जाता है! तो अंबेडकर जी के ग्लोबल व्यक्तित्व और विज़न को मान्यता मिलती है. आज जरुरत है ऐसे व्यक्तित्व को हमे पढ़ने और उनके ग्लोबल विज़न को अधिक से अधिक स्वीकार करने की. जैसे-जैसे देश की शिक्षा का स्तर ऊपर होता जायेगा अंबेडकर ग्लोबल और सर्वमान्य होते चले जायेंगे।

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