हमें इस संसार में लाने वाली एक महिला ही है, जिसके द्वारा हमारा जन्म इस पृथ्वी पर हुआ और उसे हम सब अपनी जननी, माँ, माता और आई आदि अनेक नमो से सम्बोधन करते है। उसके ही त्याग तपस्या के कारण ही हमारा मूल आधार है।
हमें इस संसार में लाने वाली माँ क्या अपने बच्चों का कभी भी बुरा सोच सकती है क्या। परन्तु हम सब के जीवन में कभी कभी इस तरह के हालात पैदा हो जाते है की हमें उस समय निर्णय करना बहुत ही भरी पड़ जाता है। और हम वो निर्णय लेते है जो एक दम से सही होता है। इसी तरह की एक छोटी सी कहानी के द्वारा मां तो आखिर कार मां होती है। घटना कुछ इस तरह की है की स्वंय की पत्नी की सोने की अंगूठी खो गई और वो बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा रही थी, की मेरी अंगूठी इन्होने उठाई है और पति बार बार उसको अपनी हद में रहने की कह रहा था और बोल रहा था, की मां ये काम कर ही नहीं सकती। लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले रही थी, और जोर जोर से चीख चीखकर कह रही थी, कि “उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी,और तुम्हारे और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है, पति के बार बार समझने के बाद भी पत्नी मानने को तैयार नहीं। बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे मारा। अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी । पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ वह घर छोड़कर जाने लगी और जाते जाते पति से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर इतना विश्वास क्यूं है..?
तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब को सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो उसका मन भर आया पति ने पत्नी को बताया कि “जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए तब मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो कमा पाती थी। उससे एक वक्त का खाना आता था, मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है बेटा तू खा ले मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह देता था, कि मां मेरा पेट भर गया है। मुझे और नही खाना है। मां ने मुझे मेरी झूठी आधी रोटी खाकर मुझे पाला पोसा और बड़ा किया है। आज मैं दो रोटी कमाने लायक हो गया हूं। लेकिन यह कैसे भूल सकता हूं कि मां ने उम्र के उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है। वह मां आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी अंगूठी की भूखी होगी …. यह मैं सोच भी नही सकता, तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो, मैंने तो मां की तपस्या को पिछले पच्चीस वर्षों से देखा है…। यह सुनकर मां की आंखों से छलक उठे वह समझ नही पा रही थी, कि बेटा उसकी आधी रोटी का कर्ज चुका रहा है या वह बेटे की आधी रोटी का कर्ज… कैसे चूका पाएगी ये सोच रही है। दोस्तों मां जिस बच्चे को जन्म देती है, वो कितनी भी बुरी क्यों न हो परन्तु अपने बच्चों के प्रति सदा ही समर्पित भाव रखती है। इस दुनिया में सब कुछ मिल जायेगा। परन्तु मां को यदि एक बार खो दिया तो फिर पूरे जीवन नहीं पा सकते हो ।
मां के स्पर्श मात्र से ही।
मिट जाते है सारे गम।
बड़े ही खुश नसीब है वो।
जिनकी मां साथ होती है।।