Killing pregnant elephant in Kerala

हम सबको अलग दिखना है । यहां तक कि हम सबसे अलग दिखने के लिए ये भी कह सकते हैं कि आज मैंने खीर खाई जिसका स्वाद चटपटा था । कहीं कहीं थुथुरलॉजी झड़ना काम कर जाता है लेकिन हर जगह ये ठीक नहीं । हम क्यों नहीं समझते कि कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं जहां हमारा सबसे अलग दिखना नहीं बल्कि सबके साथ खड़े होना मायने रखता है ।

कल केरल से गर्भवती हथिनी के मारे जाने की खबर जैसे ही सोशल मीडिया पर आई वैसे ही उसने हर किसी का मन विचलित कर दिया । जब देखा कि हर कोई अपने तरीके से उस बेजुबान के लिए अपना दुख व्यक्त कर रहा है तो मन को इस बात की तसल्ली हुई कि लोगों को अभी भी फ़र्क पड़ता है । ऐसे दौर में जहां खुद पर जब तक ना पड़े तब तक पीड़ा का अहसास नहीं होता, एक जानवर के लिए लोगों का खुल कर बोलना और दुख जताना सुकून से कम नहीं था । जब तक सब अपने विचार नहीं रखेंगे तब तक ये बात कैसे सामने आएगी कि हमें फ़र्क पड़ता है । इसलिए सबका बोलना ज़रूरी होता है ऐसे मुद्दों पर ।

लेकिन यहां भी कुछ को अलग दिखना था । बस शुरु हो गए लोग । मांसाहार शाकाहार युद्ध भी ज़ोरों पर चला, किसी ने कहा कि मज़दूरों के मरने पर कोई शोक नहीं और हाथी के मरने पर इतना दुख, यही बात पिछ्ले दिनों हुई साधुओं की निर्मम हत्या के लिए भी कईयों ने कही, कितनों ने हमेशा की तरह बताया कि ये लोगों के फर्जी आंसू हैं । जहां कोई ना बोले वहां भी तकलीफ है और जहां लोग बोल रहे वहां कुछ ज़्यादा ही तकलिफ है । लोग ये समझते ही नहीं कि दुखी कोई अपने मन से होता है । आपके लिए ये ज़रूरी होना चाहिए कि आप दुखी हुए या नहीं । बाक़ी कौन क्या कर रहा उससे आपका क्या मतलब ।

वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इस वीभत्स घटना से इतने आहत हुए कि खुद ही वीभत्स हो गए । मेरी पोस्ट पर एक लोग लिख रहे “भगवान करे पूरे केरल में तूफान से ऐसी तबाही हो कि वहां के लोग तड़प तड़प कर मरें ।” अब यार ये कौन सी संवेदना हुई? मारा किसी एक ने और तबाह होने का श्राप पूरे केरल को दे दिए ।

ये सब अलग दिखने की कोशिश करने वाले लोग हैं । हम सब समाज से जुड़े लोग हैं । समाज में रहते हुए कई शोक सभाओं में भी जाते हैं । क्या वहां कोई अलग दिखने के लिए दांत निपोरे कर सबसे मिलता है ? या कोई ये कहता है कि वाह, आपके यहां कोई मर गया है इसलिए आपको खूब बधाई ।

नहीं मेरे भाई कोई नहीं कहता ऐसा । मरने वाले व्यक्ति को भले कोई ना पसंद करता हो लेकिन उसकी शोक सभा में जाकर वह भी शोक ही प्रकट करेगा । शादी में हर कोई खुश ही दिखेगा और मातम में दुखी ही । कई मौके आते हैं जब हमें अलग नहीं दिखना होता ।

बहस के और बहुत से मौके आएंगे । वहां आप जम कर आम को इमली और गांजे को चरस कह सकते हैं लेकिन जब देश किसी के लिए रो रहा हो तो सिर्फ दुख ही व्यक्त करिए । यही इंसानियत है ।

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