time

संसार-सागर
सिर्फ समय-सराय ,
परमात्मा से बिछड़,
आत्मा यहां आय।

पार्थिव तत्वों को
उसने ही गूँथकर,
घररूपी नश्वर
शरीर बनाया ।

हाथ खुले
रखकर है जाना ,
फिर क्यों सोचे..?
कि क्या
तूने कमाया ..?

पाने से ज्यादा तू
खोकर है जाता ।
मोहमाया के जाल में
उलझ-उलझ रह जाता ।

यहीं पे पाता ,
यहीं पे खोता ।
बस मूर्ख बन ,
जाने क्यों रोता ।

आमदनी तेरी बस
‘ समय फेर का ‘।
और कमाई
‘ हृदय भरा प्रेम का ‘ ।

जितना समय-चक्र
तेरा धरती पर ।
केवल यहाँ बस
*’ प्रेम-कमाई ‘* तू कर ।

यही प्रेम
तेरे साथ है जाना ।
नहीं तो दुनियां ,
जाने भुलाना ।

बंद मुट्टी तू
लेकर है आया ,
मुट्टी बन्द ,
न जा पाएगा ।

मोह के फेर में
पड़कर तू बस,
अंत समय
पछताएगा ।

*प्रेम कमाई* से
गठरी खाली गर ,
मुँह क्या तू ,
उसको दिखाएगा ।

समय फेर के
चक्कर में बस ,
खाली हाथ आया ,
खाली ही जाएगा ।

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