खिले कमल कीचड़ में कैसे,
गहन अंधेरा दीप जले।
उल्टे बांस बरेली जैसे ,
मछली उल्टी धार चले।
तूफान भरे सागर में वो ही ,
जीवन नइया चलाता है ।
कर जिगरा फौलाद का अपना ,
चिड़िया बाज लड़ाता है ।
नहीं आसां है संघर्षो के,
तूफां में नइया खेना।
काजल की कोठर में रहकर ,
निष्कलंक जीवन जीना ।
सत्य मार्ग पर चलना है तो,
कांटों से लड़ना होगा ।
झूठ फरेब के जाल से बचकर ,
मंजिल तक बढ़ना होगा ।
बचपन युवपन में राह भटक कर ,
जो कीचड़ के संग-संग है ।
नरक गन्दगी में सड़ सड़ कर,
गलता उनका जीवन है ।
उसी गन्दगी कीचड़ में जो ,
जीवन कमल खिलाता है ।
जीवन संघर्षो से लड़कर ,
अंधियारे जगमाता है ।
राह कठिन है संघर्षों की ,
पर मंजिल मिलना निश्चित है ।
खुद जलकर दीपक बन जाना ,
यह भी तो इक प्रायश्चित है।
देश समाज पर अहसान करो तुम ,
नाश जवानी यूं न करो ।
तुफानो से खुद ही बचकर ,
संघर्षो से यूं न डरो ।
प्रताप , शिवाजी , झांसी रानी,
सब तुम पर अभिमान करे ।
भगत , चन्द्र , विवेक सरीखे ,
प्राण वरण तुम करके मरे ।
भारत का तुम सुखद भविष्य ,
बनकर जग को दिखलाओ ।
कीचड़ में संघर्षो से खिलकर ,
अपना जीवन-कमल खिलाओ ।