हिंदी है हम वतन हिन्दोस्तां हमारा, यह बात बिल्कुल ठीक है। और हिन्दुस्तान में रहकर हिंदी की अनभिज्ञता बात ठीक नहीं है। हिंदी हमारी राजभाषा हो या न हो राष्ट्रभाषा जरूर है। संविधान के भाग -17 तथा अनुच्छेद 343  से  लेकर 351 तक हिंदी भाषा के ऊपर सारी बातें कही गई है। पर सारी बातों के बाद भी हिंदी की याद केवल हिंदी पखवाड़े में ही आती है। हिंदी केवल हिन्दीभाषी क्षेत्र में ही बोली और समझी जाती है जो कि दस हिंदी भाषी प्रदेशों में ही सीमित है। दक्षिण के राज्यों में हिंदी के प्रति उदासीनता उचित नहीं है। सी.टी. मेटकाफ ने 1806 ई. में अपने शिक्षा गुरु जान गिलक्राइस्ट को लिखा:- “भारत के  जिस भाग में भी मुझे काम करना पड़ा है, कलकता से लेकर लाहौर तक, कुमाऊँ के पहाड़ से लेकर नर्मदा तक ….मैने उस भाषा का व्यवहार देखा है, जिसकी शिक्षा आपने मुझे दी है।….मै कन्याकुमारी से कश्मीर तक या जावा से सिंधु तक इस विश्वास से यात्रा करने की हिम्मत कर सकता हूँ कि मुझे हर जगह एसे लोग मिल जाएँगे जो हिंदुस्तानी बोल लेते होंगे। हमें हिंदी पर नाज़ करते हुए इसके विकास में योगदान देना चाहिए।”

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