ghazal sirf tum-mere

किस तरह शब-ओ-सुबह कह दूं तुम्हें तुम सिर्फ़ मेरी
तुम दो तो कोई वजह कह दूं तुम्हे तुम सिर्फ मेरी

ग़म – ए – गेसू की ये तह कह दूं तुम्हे तुम सिर्फ़ मेरी
तुम ख़ुदा हो किस तरह कह दूं तुम्हे तुम सिर्फ़ मेरी

यूं ही दिन गुज़रे इबादत मे तिरे मुझको बता भी
है तिरे दिल मे जगह कह दूं तुम्हें तुम सिर्फ़ मेरी

चश्म – ए – बद तो नही जो दीदार करने से रोका
तीरगी मे बे – वज़ह कह दूं तुम्हे तुम सिर्फ़ मेरी

हुस्न – ए – सूरत तुम्हारी और बद सूरत हमारी
मुफ़्लिसी ज़द के सह कह दूं तुम्हे तुम सिर्फ़ मेरी

आशिक़ी में हक़ जताना भी अब कोई आशिक़ी है
क्यूँ दे कर के तवज्जह कह दूं तुम्हें तुम सिर्फ़ मेरी

‘अंशु’ से रूठी हो क्यों कैसे रिझायेंगे तुम्हे अब
जब भी तुमसे हो सुलह कह दूं तुम्हे तुम सिर्फ़ मेरी

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