लगाकर दिल तुम अपना,
फिर मुँह मोड़ा न करो।
किसी के दिल से तुम,
इस तरह खेला न करो।
मिले थे दिल हमारे,
तभी तो साथ हुए थे।
पर अब क्या हुआ तुमको,
जो रूठ गये हम से।।
बड़ी बड़ी कसमें तुम,
उस समय खा रहे थे।
जब दिल को दिल से,
मिला तुम रहे थे।
कहाँ गईं वो कसमें
जो तुम खाया करते थे।
बनाकर आशियाना
अपनी मोहब्बत का,
तोड़ क्यों दिया तुम ने,
समझ मेरी न आया।।
न काम होती है मोहब्बत,
अक्सर ऐसे ही लोगो की।
जो प्यार मोहब्बत को,
समझते खेल बच्चों का।
और इसे नादानियाँ कहकर,
पल्ला अपना झाड़ लेते है।
और सच्चे प्रेमियों को,
ये कर देते है बदनाम।।