मुद्दते गुज़र गयी ,
तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,
कि आखिर ,
आप आए ।
शाम-ए-ग़ज़ल सुनाऊँ या,
हाल-ए-दिल
सुनुँ तुम्हारा ।
नज़र-ए-बयां करूँ या ,दिखाऊँ ,
यह दिलनशीं नज़ारा ।
तेरी मासूमियत पर ,
मेरी ख़ुशी मुस्कुराए ।
मुद्दते गुजर गयी ,
तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,
कि आखिर
आप आए ।
आलम गुज़रे ज़माने का ,
न कभी मज़लिस
नाम हुआ ।
मिटी कभी तन्हाई तो ,
मैं महफ़िल में भी,
बदनाम हुआ ।
तेरे बिन वक्त जैसे ,
मुझे वहीँ ठहरा पाए ।
मुद्दते गुज़र गयी ,
तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,
कि आखिर ,
आप आए ।
हुस्न-ए-रौनक भी कहीं,
बस खोई सी मुझे लगती है ।
गम-ए -जुदाई में ,
आप भी डुबोई सी ,
मुझे लगती है ।
आओ मिल जाएं कि ,
शब रंगीन हो जाए ।
मुद्दते गुज़र गयी ,
तफ्शील से बतियाए ।
हुई इनायत-ए-खुदा ,
कि आखिर
आप आए ।