maharana pratap

संस्कारों के, पालक महान तुम ,

संस्कृति तुमने ना छोड़ी ।

ली जो प्रतिज्ञा मेवाड़ इतिहास में,

अब तक ना तुमने तोड़ी ।

बुरे समय में प्रण कर धारण,

राणा के जो सहचर थे ।

पल-पल जिन ने साथ निभाया,

वो अरमानी अनुचर थे ।

वन ही केवल सबकुछ जिनका,

मेहनत,श्रम थे आभूषण।

ऐसे थे इस देश के वासी ,

जीवन जिनका पर्यूषण ।

अपनी धरती आजादी का ,

राणा ने जब प्रण धारा ।

राणा संग था जीना-मरना ,

स्व क्या सब, जीवन वारा ।

मुगलों संग पीढ़ी गत पल-पल,

ज्यों-ज्यों रण था, चलता रहा।

लिया प्रताप के ,संग जो प्रण था,

वंशागत वो बढ़ता रहा ।

खत्म हुआ, वो संघर्ष तुम्हारा,

अब स्वराज तुम्हारा है ।

प्रण पूरा ,तुम कब मानोगे,

यह संकल्प तुम्हारा है ।

निज सम्मान को, करके अमर तुम,

मुख्यधारा की ओर चलो ।

जो पोरुष और दृढ़ बल तुम में,

तुम धारा को मोड़ चलो ।

संघर्ष ये मिलकर, चले अनवरत,

मिलकर कदम से, कदम के साथ ।

शासन और प्रशासन थामें,

तुम्हारी बिगड़ी हुई जो बात ।

सुख में भी सम भाग तुम्हारा,

हक मांगो दम भर कर तुम।

यायावरी को त्यागो अब तुम,

जीवन तारण अब कर तुम ।

“तुमसे भावी भाग्य हो उज्ज्वल”,

धारण करो यह प्रतिज्ञा ।

एक साथ जब, चलोगे संग-संग,

मिले सभी को हर सुविधा ।

फुटपाथों पर जीकर जीवन ,

कैसे खुद को संभालोगे ।

खुद तो फिर भी, संभल भी जाओ,

पीढ़ियां कैसे तुम तारोगे ।

खुद की नहीं तो,उनकी सोचो,

जो भारत के भावी भविष्य ।

प्रण-ज्वाला में जल ना जाएं,

जीवन बनकर एक हविष्य ।

मुख्यधारा के प्रगति पथ पर,

स्वागत करते तुम्हारा हैं ।

पूर्ण हुवा वो प्रण कब ही का,

‘ अजस्र ‘ सवेरा हमारा है ।

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