पत्नीजी गर्मी की छुट्टियों में मायके जाने लगीं। साले साहब लेने आये थे और उस पर तुर्रा यह था कि चार पहिया से लेने आये थे। बरसों पहले एम्बेसडर से ब्याह कर मेरे घर आई पत्नी अब स्कार्पियो से मायके जा रही थी ये और बात है कि मेरी मोटरसाइकिल भी ईएमआई पर चल रही थी।
बाहर गाड़ी में सब सामान रखा जा चुका था और बच्चे भी गाड़ी में बैठ गए थे। साले साहब गाड़ी का हॉर्न जल्दी चलने के लिये बजाते ही जा रहे थे आखिर नई स्कार्पियो जो ठहरी। पर मेरी पत्नी इतनी आसानी से कोई सफर शुरू कर दे तो फिर कहना ही क्या?
मुझे कहना ही पड़ा “अरी भागवान, अब निकलो भी। तुम्हारा भाई कब से हॉर्न पे हॉर्न दिए जा रहा है? सफर का सब सामान ठीक से रख लिया है ना?”
“ मैंने तो सब सामान ठीक से रख लिया है पर आप मेरे जाते ही घर को कबाड़खाना मत बना लेना । पिछली बार तुमने टांड़ पर पांच-सात बोतलें ये समझ कर फेंक दी थी कि उन पर मेरी कभी नजर ही नहीं पड़ेगी। अबकी बार ऐसा हुआ तो सारी पियक्कड़ी भुलवा दूंगी” उसने आंखे तरेरते हुए कहा।
“अरे नहीं, अबकी ऐसा कुछ नहीं होगा।मैं घर का ख्याल बिल्कुल उसी तरह रखूंगा जैसे तुम रखती हो।कामवाली बाई से मैं सब चीजें साफ करवा कर रखूंगा। उसे कुछ रुपये एक्स्ट्रा दे दूँगा तो सब चकाचक रखेगी” मैंने पत्नीजी को आश्वासन दिया।
“उसे तनख्वाह मैं दे चुकी हूँ। उसे एक्स्ट्रा पैसे देने की कोई जरूरत नहीं है। रुपया और लाड़ प्यार उस पर निछावर मत करो। उसका काम ही साफ-सफाई है तो वह कर ही देगी,बिना तुम्हारे प्यार जताए भी । अलग से लाड़ -प्यार उड़ेलने की कोई जरूरत नहीं है उस पर” पत्नीजी ने निर्विकार स्वर में कहा।
उसके इस हमले से मैं असहज हो गया। मैंने बात संभालने की सोची और माहौल बनाते हुए पूछा –
“क्या उल्टा-सीधा कहे जा रही हो ? मेरी तुम्हारी उम्र थोड़े ना है ये सब बातें करने की ?
“छिछोरेपन का उम्र से क्या लेना -देना? मैं कभी ऐसी नहीं थी तुम हमेशा से ऐसे ही थे । मौका मिलते ही मुंह ,,,, ” ये कहते हुए उसने बात अधूरी छोड़ दी। भले ही उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी थी मगर उसकी बात का मैं पूरा मतलब समझ गया था। उसके जाने से मुझे खुशी तो हो रही थी मगर जाने से पहले मुझ पर लगाई गई उसकी इस तोहमत से क्रोध के मारे मेरी आंखों में खून उतर आया था। मैंने उसे आग्नेय नेत्रों घूरा।
मगर मेरे नैनों के क्रोध भरे बाणों से अप्रभावित होते हुए पत्नीजी ने कहा
“क्रोध से आंखे जलाने की कोई जरूरत नहीं है। अभी तुम घूर रहे हो तो मैंने देख लिया मैं घूरूँगी तो तुम तो मेरा गुस्सा देख भी नहीं पाओगे,क्योंकि चश्मा तुम्हारा फ्रिज के ऊपर रखा है। चश्मा,चश्मे के केस में ही रखना और फ्रिज के ऊपर ही रखना जिससे इधर-इधर खोजने के लिये भटकना न पड़े। और हाँ, चश्मे से याद आया कि सुबह-सुबह ब्रश करने के बाद चश्मा लगाते ही अखबार मत खोजने लगना हमारा पेपर वाला देर से आता है। पेपर पता करने के बहाने सुबह -सुबह पड़ोसियों के घर खींस निपोरने मत पहुंच जाना। हमारा पेपर और पेपर वाला भी सबसे अलग है। हमारे घर हिंदी का अखबार आता है पड़ोस के सभी घरों में अंग्रेजी का अखबार आता है। और अंग्रेजी पेपर तुम्हारे लिये चश्मे जैसा है, न तो तुम चश्मे के बिना पढ़ सकते हो और न ही अंग्रेजी पढ़ सकते हो।इसलिये अपनी बेइज्जती मत करवाना सुबह-सुबह”।
मैं कुछ कड़वा बोलने ही वाला था कि उसके पहले ही उसने अपनी बातों का गियर बदलते हुए कहा –
“तुम्हारी सारी बनियान और अंडरवियर कबर्ड के ऊपरी खाने में एक जगह तह करके रख दी है। तुम्हारे अंडरगारमेंट्स का नम्बर 95 है। देख-भाल कर ही पहनना। बच्चों की न पहन लेना। पिछली बार तुमने बच्चों की चड्ढी-बनियान पहन ली थी। तुम्हारी तोंद और चौखटे जैसी कमर पर पहनने की वजह से बच्चों के चड्ढी-बनियाइन ढीले होकर झोला हो गए। इसलिये अपनी चीजों पर ही फोकस रखा करो, दूसरों की चीजों पर नहीं। फिर चाहे वो अपने कपड़े हों या अपनी पत्नी” यह कहते हुए पत्नी कुटिलता से हंसी।
उसके इस व्यंग्य बाण से मैं बुरी तरह से आहत हो गया। मैंने उससे आर या पार पूछने का निर्णय किया। उसकी बातों से मैं क्रोध से उबलने लगा था।
मेरे तमतमाये चेहरे को देखकर वह निर्विकार स्वर में बोली-
“बेकार में खून जलाकर अपना ब्लड प्रेशर बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हारी सब मेडिकल रिपोर्ट्स नार्मल हैं। बार-बार उस लेडी डॉक्टर अल्का गुप्ता को दिखाने की जरूरत नहीं है। वैसे भी वह गायनकालोजिस्ट है। महिलाओं के जच्चा-बच्चा का इलाज करती है मर्दों के बीपी-शुगर का नहीं जो एक रुपये का सरकारी पर्चा बनवा कर आधे दिन उसे निहारने में गुजार देते हो”।
मैं हैरान रह गया कि मेरे इलाज की इतनी महीन बात इसे कैसे पता? इसका तो बरसों से पढ़ाई-लिखाई से कोई नाता ही नहीं रहा है।
वह मेरी मनोदशा भांप कर बोली-
“बहुत हैरान-परेशान होने की जरूरत नहीं है कि यह सब मुझे कैसे पता? यह सब तिवाराइन चाची ने बताया है। उनकी छोटी बहू प्रेग्नेंट है। वह डॉक्टर अल्का गुप्ता को रेगुलर दिखाने जाती हैं आजकल। डाक्टरनी ने बताया कि एक अधेड़ उम्र के मोटे से और गंजे अंकल हैं जो हर तीसरे दिन बेवजह उन्हें दिखाने चले आते हैं। उस आईटॉनिक के तलबगार से वह डाक्टरनी बहुत इरीटेट हो जाती है। उस यंग डाक्टरनी ने मोटा,गंजा अंकल तुम्हे ही कहा है।जानते हो, वही तिवाराइन चाची जिनसे तुम इतनी गप्पें लड़ाते हो और उन्हें अपना हमदर्द समझते हो। अब वही चाची डॉक्टर अल्का की बात का नमक मिर्च लगाकर तुम्हे सारे मोहल्ले में गंधवा रही हैं। मैं कहा करती थी न कि पराई नारी से ज्यादा गप्प न लड़ाओ। अब झेलो चाची की फजीहत”।
मुझे तिवाराइन चाची से ये उम्मीद नहीं थी। उन्होंने ही मुझे डॉक्टर अल्का के बारे में बताया था कि बड़े वाले सरकारी अस्पताल में एक बहुत अच्छी लेडी डॉक्टर आई है,जाकर दिखा लो। अब बाद में वही चाची अब ये सब कर रही हैं।
“क्या सोच रहे हो मन ही मन। जो मन की बात है वह अपनी अर्धांगिनी से कहो। न कि मोहल्ले की ओझाइन, शुक्लाइन, ठकुराइन और चौधराइन से कहो। पर तुमको तो पड़ोस की महिलाओं की कुशल-क्षेम की फिक्र लगी रहती है। उन सबकी फिक्र मत करो।उनकी फिक्र करने के लिए उनके पति और बच्चे हैं। वो सब भी गर्मियों में अपने मायके या गांव जाएंगी। सबने अपने जाने का इंतजाम कर लिया है।तुम्हे उनके ट्रेन या बस की टाइमिंग और रूट बताने की कोई जरूरत नहीं है अपने मोबाइल से चेक करके। सबके घर में मोबाइल है सब चेक करवा लेंगी ट्रेन-बस।तुम्हारी समाज सेवा की जरूरत नहीं है उन्हें।”
मेरा मन कर रहा था कि मैं इस औरत का मुंह नोच लूं। इसने तो मेरी बुरी तरह से किलेबंदी कर दी थी। पर वह मेरे जीवन में किष्किन्धा नरेश बाली की तरह थी ।उस महिला के सामने मेरा बल सदैव आधा ही रह जाता था और आत्मबल जीरो।
मैंने अपने मनोभावों को जब्त करते हुए उसकी तरफ मुस्करा कर देखा।
पत्नी कुछ देर सोचती रही फिर कुछ याद करते हुए बोली “और हाँ, घर के पीछे उस ब्यूटी पार्लर वाली गोरी मेम सिंथिया से दूध, शक्कर, काफी मांगने के बहाने उसके घर में न चले जाना। तुम्हे बड़ी जिज्ञासा रहती है कि ब्यूटी पार्लर में क्या -क्या होता है ? पहले ही बता देती हूं कि ब्यूटी पार्लर में भी वही सब होता है जो नाई की दुकान में होता है। इसलिये होशियार रहना।नहीं तो लेने के देने पड़ जाएंगे”।
अचानक बाहर से स्कार्पियो का हॉर्न साले साहब तेजी से बजाने लगे। पत्नी ने अपना हैंडबैग सम्भाला और जाते-जाते आंखें तरेरती हुई बोली- “तुम पर हर पल मेरी नजर रहेगी। इसलिये मैं कितने दिनों तक बाहर हूँ, ये गिन कर ज्यादा ओवर स्मार्ट बनने की कोशिश मत करना। और याद रहे मैं कभी भी वापस आ सकती हूँ” यह कहते हुए वह बाहर निकल गई, मुझे कयासें लगाता हुआ छोड़कर।
बाहर साले साहब की स्कार्पियो में एक फिल्मी गीत बज रहा था-
“मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो”।
मुझे ये समझ में नहीं आ रहा था कि पत्नीजी सचमुच मायके जा रही हैं या सिर्फ मेरी नजरों से ओझल हो रही हैं। मुझे तो ये भी सूझ नहीं रहा कि था कि मैं खुश होऊं या उदास।
