पंडित विद्यानिवास मिश्र की जन्मशताब्दी के अवसर पर आज ‘विद्याश्री न्यास’ एवं हिंदी विभाग, उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी के संयुक्त तत्पावधान में उदय प्रताप कॉलेज के राजर्षि सेमिनार हाल में ‘आधुनिक हिंदी कविता’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार एवं विचारक प्रो. दिलीप सिंह ने किया। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि पंडित विद्यानिवास मिश्र का संबंध निबंध लेखन, पत्रकारिता, संस्कृति और लोक साहित्य से तो था ही साथ ही हिंदी कविता से भी उनका गहरा संबंध था। पंडित विद्यानिवास मिश्र ने ‘मॉडर्न पोएट्री’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ का हिंदी अनुवाद एवं पाठ विश्लेषण किया था जिसमें दुनिया एवं हिंदी के प्रमुख कवियों को स्थान दिया गया है। प्रो. दिलीप सिंह ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि यह बात ठीक नहीं है कि आधुनिक हिंदी कविता में आभिजात्य अधिक है। यह बात त्रिलोचन, केदारनाथ सिंह जैसे कवियों के द्वारा प्रमाणित होती है। उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता में संवेदना के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इन कविताओं में संवेदना का स्तर जमीन पर उतर आया है। अब कविता हवा में बात नहीं करती। उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि इस कविता में व्यंग्य का स्वर प्रमुख हुआ है, लोकरंग की गहराई स्पष्ट होकर सामने आई है और इस कविता में भाषा में कसावट, अतीत को चित्रित करने की क्षमता आई है। यह विशेषताएं हमें धूमिल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, लीलाधर जगूड़ी, मुक्तिबोध, केदारनाथ सिंह, महेश अनघ, त्रिलोचन जैसे कवियों में अच्छी तरह दिखाई देती है।
आज की इस संगोष्ठी में ‘स्वाधीनता के पूर्व हिंदी कविता’ पर बोलते हुए प्रसिद्ध कवि अष्टभुजा शुक्ल कहा कि यह कविता पराधीनता के भीतर छटपटाती हुई स्वाधीनता की चेतना की कविता है जो हमारे भीतर अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध तीव्र चेतना का संचार करती है। आजादी के पूर्व जयशंकर प्रसाद, निराला, पंत, दिनकर जैसे कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से पराधीनता के विरुद्ध स्वाधीनता का वातावरण निर्मित किया । उन्होंने आजादी के पहले की हिंदी कविता के वैशिष्ट्य को रेखांकित करते हुए यह भी कहा कि आजादी के पहले के हिंदी कविता न केवल स्वाधीनता की चेतना की कविता है बल्कि वह हमें सौंदर्य और प्रेम के लिए लड़ना सिखने वाली कविता भी है। आजादी के पहले की हिंदी कविता की यही बुनियाद उसे आज भी प्रासंगिक बने हुए है।
संगोष्ठी में ‘आजादी के बाद से लेकर 1990 तक’ की हिंदी कविता पर बात करते हुए प्रसिद्ध कवि एवं कथाकार श्री श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि कविता हमेशा ही प्रतिपक्ष में खड़ी होती है। यह बात आजादी के बाद की हिंदी कविता पर विशेष रूप से लागू होती है । यह मूल रूप से मनुष्यता के पक्ष में खड़ी हुई कविता है। उन्होंने इन चार दशकों में नई कविता और समकालीन कविता में आने वाले राजकमल चौधरी, धूमिल, श्रीराम सिंह ‘सलभ’, कुमारेन्द्र पारसनाथ सिंह, विजेंद्र, वीरेंद्र डंगवाल, गोरख पांडे, राजेश जोशी, अरुण कमल, विनोद कुमार शुक्ल, चंद्रकांत देवताले, श्रीकांत वर्मा जैसे कवियों की चर्चा करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि आजादी के बाद की हिंदी कविता मनुष्यता के पक्ष में खड़ी हुई कविता है।
आज की संगोष्ठी में 1990 के बाद की हिंदी कविता पर बोलते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में हिंदी विभाग के प्रो. प्रभाकर सिंह ने कहा कि 90 के बाद की हिंदी कविता वैश्वीकरण के प्रभाव, समाजवादी दुनिया के महास्वप्न के टूटने आदि से उपजी कविता है। उन्होंने यह भी कहा कि 1964 के बाद की हिंदी कविता पर सबसे ज्यादा प्रभाव मुक्तिबोध का रहा है। प्रो. प्रभाकर सिंह ने 90 के बाद हिंदी कविता की कम से कम चार पीढ़ियों के कवियों के रचनारत होने की बात कही और इस अवधि में आने वाले कुंवर नारायण, राजेश जोशी, अष्टभुजा शुक्ल, गगन गिल, बोधिसत्व, एकांत श्रीवास्तव, राकेश रंजन, अच्युतानंद मिश्र, जेसिंदा केरकेट्टा, अनुज लुगुन जैसे महत्वपूर्ण कवियों का उल्लेख किया। उन्होंने 90 के बाद की कविता की एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति विस्थापन की बताया। साथ ही आदिवासी कविता की चर्चा करते हुए यह भी कहा कि वह केवल जल, जंगल और जमीन के लिए लड़ने वाली कविता नहीं ही है बल्कि पर्यावरण को बचाने के लिए संघर्ष करने वाली कविता भी है।
आज की संगोष्ठी में मंगलाचरण श्री नरेन्द्र नाथ मिश्र ने किया और आए हुए अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. धर्मेंद्र कुमार सिंह ने किया। उन्होंने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि पंडित विद्यानिवास मिश्र आरंभ से ही कला, संस्कृति, भाषा, साहित्य और राजनीति से गहरी सलंग्नता रखने वाले साहित्यकार एवं विचारक थे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आजादी के बाद का समय भारतीय जीवन और समाज के लिए गहरी छटपटाहट का समय है जिसका प्रमाण इस दौर की हिंदी कविताओं में प्रचुरता से मिल जाता है।
आज की संगोष्ठी का संचालन और प्रो. गोरखनाथ ने किया और धन्यवाद विद्याश्री न्यास के सचिव श्री दयानिधि मिश्र ने दिया। इस अवसर पर डॉ. राम सुधार सिंह, श्री ओम धीरज, डॉ. अशोक सिंह, प्रो. श्रद्धानंद, प्रो.एस.के. सिंह, प्रो. उदयन मिश्र, प्रो.प्रकाश उदय, प्रो .बनारसी मिश्र, प्रो. सुधीर कुमार शाही, प्रो. सुधीर कुमार राय, प्रो. शशिकांत द्विवेदी, प्रो.पंकज कुमार सिंह, प्रो. मनोज प्रकाश त्रिपाठी, प्रो.मधु सिंह, डॉ.डी.डी. सिंह, प्रो. अनिता सिंह, डॉ. संजय श्रीवास्तव, डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ.अनूप कुमार सिंह, डॉ. सपना सिंह, डॉ. रंजना श्रीवास्तव, डॉ. अग्नि प्रकाश शर्मा , डॉ. शशिकांत सिंह सहित बड़ी संख्या में छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रहे।

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