वक्त के अंधेरे में वेवक्त ही मुलाक़ात हो जाये।
दोस्ती न सही दुश्मनी की ही बात हो जाये।
फिर से दोहरा लेते भूली – बिसरी यादों को,
गुलो में गुलबहार न सही काँटा बबूल हो जायें,
बात न करना तुम इश्क ए चराग जलाने की,
मेरे दिल की आग से अंधेरा काट दिया जाये।
शीतलता की चाह नही अब चाँदनी रातो की।
आओ रात पूरी खुली आँखों से देख लिया जाये।
महफिल -ए-शाम सजाने की कोई ईजाद नही।
तुम मिलो तो, एक पल का प्रणयगीत हो जाये।
इज़हार तुम करो मेरे रकीब का पूरे ईमान से।
मेरी मुहब्बत का इंतकाल सरेआम हो जाये।