khani payare guru

एक पतली सी छड़ी के सहारे पैरों को ज़मीन पर घिसट कर चलते हुए प्यारेलाल जैसे तैसे अपनी खटिया तक पहुंचे ही थे कि किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया । अरे कौन कम्बख्त होगा इस भरी दोपहरी में । अपने घर में आग लग गई जो यहां मरने चले आए । ये सब प्यारेलाल मन ही मन बुदबुदा रहे थे ।

श्रीमती के जाने के बाद प्यारेलाल की हालत कुछ ज़्यादा ही दयनीय हो गई है । वैसे इतने भी कमज़ोर नहीं हैं कि थोड़ा बहुत चलने में भी दिक्कत हो । वो तो कल से मुंह पेट चल रहा है जिस वजह से कमज़ोरी आ गई है । अब कोई करने वाला हो तो समय कट जाता है लेकिन यहां तो ले दे के खुद की जान ही है । अड़ोसी पड़ोसी भी कितना करेंगे ।

खैर दरवाज़ा खटका है तो खोलना ही पड़ेगा । अपने ज्ञान भर गलियां मन में गुनगुनाते हुए जैसे तैसे प्यारेलाल ने दरवाज़ा खोला । सामने खड़े शख्स को देख कर प्यारे बाबू की आंखें चौंधिया गयीं । टाईड के विज्ञापन से भी ज़्यादा सफ़ेद कुर्ता पहन रखा था बंदे ने । इतना सफ़ेद की रात को चौराहे पर टांग दो कुर्ता तो पूरे गांव में रौशनी रहे । ऐसे में भला प्यारे बाबू की बूढ़ी आंखें कैसे ना चौंधियातीं । कुछ देर गौर से देखने के बाद प्यारे बाबू ने पाया कि कोई अपरिचित ही है ।

पक्के रंग का एक आदमी जिसकी उम्र 50 55 के बीच की रही होगी हाथ जोड़े दरवाज़े पर खड़ा था । प्यारे बाबू पहचानने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उनका बूढ़ा दिमाग कुछ खास कामयाब हो नहीं रहा था ।

“गुरू जी गोड़ लागी ।” कहते हुए वो लंबे कद का आदमी प्यारेलाल के पैरों में बिछ गया । उन्हें देखते ही वो शख्स इतना भावविभोर हो गया की साष्टांग दंडवत करते हुए उसने अपने झक सफ़ेद कुर्ते के मैले हो जाने के बारे में एक बार भी नहीं सोचा ।

“अरे अरे का कर रहे हैं, उठिए उठिए । खुस रहिए ।” पहले से ही झुकी कमर को थोड़ा और झुकाते हुए प्यारेलाल बोले ।

“तनिका पहिले जैसे ही पिठीअवा पर हाथ मार दीजिए । उससे असिर्बाद का पूरा फील आता है ।” उस शख्स की बात सुन कर प्यारे बाबू ने खुद को थोड़ा और झुकाया और उसके पीठ को सहलाने की भरपूर कोशिश की । लेकिन उसकी पीठ तक उनका हाथ नहीं बल्कि सिर्फ दो उंगलियां ही पहुंच पाईं ।

प्यारेलाल जगत इंटर स्कूल में मास्टर हुआ करते थे । यहीं से प्रिंसीपल के पद से रिटायर हुए । जैसे क्रिकेट जगत में कई ऐसे खिलाड़ी आए जो मैदान में उतरे तो बल्लेबाज या गेंदबाज बन कर लेकिन समय की मांग ने उनसे बैटिंग बॉलिंग फील्डिंग कीपिंग सब करवा दी ।

ठीक वैसे ही प्यारे गुरू भी आए तो थे स्कूल में अंग्रेजी के मास्टर बन कर लेकिन बन गए ऑल राउंडर । जिस क्लास में किसी सबजेक्ट का मास्टर गैरहाजिर होता प्यारे गुरू वहीं अपनी हाजिरी लगा देते । ना उनके लिए विषयों की कोई सीमा थी ना ही कक्षाओं की । पहली से बारहवीं तक को मैथ से फिजीकल तक सब पढ़ा लेते या फिर पढ़ाने का दावा करते । ऐसे में सभी बच्चों के बीच उनकी अच्छी खासी बुरी पहचान थी । बच्चे इनके पढ़ाने से ज़्यादा इनके मुफ्त के ज्ञान से घबराते थे ।

वो शख्स दो उंगलियों की छुअन से ही तृप्त हो गया था । वो तुरंत उठा और फिर से हाथ जोड़ खड़ा हो गया । काफ़ी देर उसके चेहरे को घूरने के बाद प्यारे गुरू को हार कर पूछना ही पड़ा “कौन हो बेटा ? पहचाने नहीं ।”

“जमाना बीत गया गुरू जी अब कहां से पहचाने जाएंगे । लेकिन आपको हम नहीं भूले । बाक़ी भीतर बुलाएंगे कि अपना कक्षा की तरह पूरा क्लास बाहरे खड़ा हो के लगाना होगा हमको ।” इतना कह कर वो शख्स हंसने लगा और प्यारे गुरू शर्मा गए ।

“अरे नहीं नहीं, भीतर आवा ।” कहते हुए धीरे धीरे से मुड़े प्यारे गुरू । जब तक वो मुड़ते तब तक आगंतुक आपने हाथ में बड़े बड़े थैले लिए घर के भीतर तक घुस आया था ।

पूरे 5 मिनट लगे प्यारे गुरू को अपनी खटिया तक आने में । तब तक वो अनजान शख्स पूरे घर को निहारता रहा । घर में लागी तस्वीरें देख मुस्कुराता रहा ।

“माफ करना अब ज्यादा कुछ याद नहीं रहता ना ।” प्यारे गुरू ने बात छेड़ते हुए कहा ।

“समझ रहे हैं गुरू जी । बुढ़ापा ससुर अबस्था ही ऐसी है का किया जाए । खैर हम आपको याद कराते हैं । हमारा नाम हुआ तेजन, तेजन किसोर । आपसे पढ़े हैं हम । पढ़े तो और भी मास्टर लोग से हैं लेकिन आपसे जो असिर्बाद हमको मिला ऊ जिंदगी बना दिया हमारा ।” तेजन के नाम बताने के साथ ही प्यारे गुरू लगे दिमाग के बूढ़े घोड़े दौड़ाने । अब घोड़ा कभी बूढ़ा हुआ है भला सो पहुंच गया तेजन तक ।

“तेजन, मंगरू के लईका ? है न ?” प्यारे गुरू की आंखें चमक गईं । तेजन भी मुस्कुरा दिया ।

“हे हे हे । पहचान ही गए आप ।”

“अरे कहां गायब हो गए थे तुम ? हम बहुत लोग से पूछे लेकिन कोई सही से जबाब नहीं दिया ।” हालांकि प्यारे गुरू झूठ बोल रहे थे उन्होंने ना किसी से तेजन के बारे में कभी पूछा था ना ही उन्हें कभी उसकी परवाह थी ।

“आप ही का बात पूरा करने निकल गए थे गुरू जी । उसके बाद इधर लौटे ही नहीं । ये तो हमारे ही एक क्लास साथी थे बिनोद, उन्हीं से आपका चर्चा हो रहा था एक दिन तो मन में आया कि मिल के आया जाए ।”

“अच्छा किए बाबू । बाक़ी अब किसी को कहां पड़ा है कि अपना बूढ़ा मास्टर का हाल पुछ जाए । ये तो तुम ही हो जो चले आए ।”

“अरे गुरू जी कइसा बात कर रहे आपका तो कतना मन लगुआ बिदयार्थी सब था । ऊ सब को तो आना चाहिए ।”

“किसके पास एतना समय है तेजन । यहां तो हमारा अपना लईका सब है उहे सब नहीं आता भेंट करने । कहता है काम बहुत है । शायद हमारा मरने का रस्ता देख रहा हो सोच रहा हो मरने पर ही जाएंगे । एक साथ सब निपटा आएंगे ।” प्यारे गुरू की आंखें भीग गईं ।

“अरे गुरू जी ऐसा न सोचिए । होता है सबका अपना मजबूरी । अच्छा ई कुछ फल और थोड़ा बहुत जरूरी समान लाए हैं । सोचे आप अकेले रहते हैं तो ई सब काम आएगा ।” आपने साथ लाए थैलों की तरफ इशारा करते हुए तेजन ने कहा ।

“ई सब की क्या ज़रूरत थी तेजन । हमारा जईसे तईसे चलिए रहा है ।”

“अरे गुरू जी हम तो पहिले ही बहुत देर से आए हैं इसका अफसोस है हमे ऊपर से आप और सर्मिंदा कर रहे हैं हमको ।”

“नौकरी में हो ?” कुछ इधर उधर की बात करने के बाद गुरू जी ने तेजन से पूछा ।

“अरे नहीं गुरू जी । आप ही कहते थे नौकरी हम लोग के लिए कहां । हम तो आपका बताए रस्ता पर चल रहे हैं ।” तेजन ने मुस्कुरा कर कहा ।

“हम ऐसा कौन रस्ता बता दिए तुमको ?” गुरू जी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा । तेजन ने तब तक थैले में से एक जूस का डिब्बा निकाल लिया था । पास टेबल पर पड़े गिलास को धो कर उसमें जूस डाल कर गुरू जी की तरफ बढ़ा दिया ।

“ई पीजिए ताकत आएगा ।” गुरू जी ने गिलास पकड़ लिया ।

“शायद आपको अब याद ना हो लेकिन आप जब भी कछा में आते थे तब हमसे कुछ पूछते और हम एकदम्मे सांत हो जाते । आप हर बार हमसे कहते कि तुम्हारे बस का नहीं है पढ़ाई लिखाई तुम फल सब्जी का ठेला ही लगाओ जा के । सच कहें तो तब हमको बहुत गुस्सा आता था । आपकी बात पर कछा में सब हंस देता था हम पर । हमारे पिता जी यही तो करते थे । हमको होता था आप उनको लगा के हमारा मजाक उड़ा रहे हैं । हम पढ़ना चाहते थे । लेकिन पढ़ने का समय ही नहीं मिलता था । ऊपर से आपका बार बार एक ही बात कहना । हम पढ़ाई ही छोड़ दिए । किसी को कोनो फरक नहीं पड़ा । पिता जी हमारे उल्टा खुस हुए कि अब हम उनका मदद कर पाएंगे । समय बीतता रहा, बहुत कुछ करने का कोसिस किए लेकिन कामयाब नहीं हुए । अंत में आपका बात हमको याद आया । हम सोचे कि एक गुरू जो अपना बच्चा सबको सही रस्ता दिखाता है ऊ काहे हमसे बार बार कहता रहा कि फल सब्जी का ठेला लगाओ । शायद हमारा यही रस्ता है । तब से हम इसी काम में लग गये ।” तेजन अपनी सारी बात एक ही सांस में कह गया । प्यारे गुरू जूस का गिलास लिए एकटक उसे देखते रहे ।

“हमारा ऐसा मतलब नहीं था तेजन ।” गुरू जी कुछ शर्मिंदा हुए ।

“अरे गुरू जी आपका मतलब एकदम सही था । हां हमें पहले होता था कि गुरू जी बार बार यही बात काहे कहते हैं । वो ये भी पूछ सकते हैं कि हम क्यों नहीं पढ़ते या हमारे साथ क्या समस्या है लेकिन आप कभी ये नहीं पुछे आप हमेशा कहे सब्जी फल बेचो । मगर समय के साथ समझ आया कि आपका वो सब कहना हमें कहां से कहां ले आया । गुरू जी आज भी हम फल सब्जी ही बेचते हैं लेकिन ठेला नहीं लगाते । आपका आशीर्वाद से बड़ा व्यापार है । नाम लेते हैं लोग हमारा । मिसाल देते हैं हमारी मेहनत की । मगर उन्हें क्या पता इन सबके पीछे आप हैं । हम शहर चले आए ये सोच कर कि गुरू जी के बताए रस्ते पर ही चलना है । शुरू में वही ठेला लगाए जो पिता जी लगाते थे । लेकिन वहीं चक्कर नहीं काटे बल्कि आगे बढ़ते रहे । जब जब हारने लगे तब तब आपको याद किया कि गुरू जी क्या कहते थे । और आज देखिए हम कहां हैं ।” तेजन मुस्कुरा रहा था और प्यारे गुरू धरती को फट जाने की विनती कर रहे थे जिससे वो उसमें समा सकें ।

“अब क्या बोलें तेजन ।”

“आप कुछ मत बोलिए गुरू जी बस असिर्बाद दीजिए । बाक़ी आज से आपको कोई चीज का दिक्कत नहीं होगा । हम बराबर आते जाते रहेंगे । कोई जरूरत होगा तो फोन करिएगा ।” तेजन ने गुरू जी के पैर छुए और वहां से चला गया । गुरू जी तेजन को जाता देखते रहे और यही बात सोचते रहे कि उन्होंने जो किया उसके लिए खुद पर गर्व करें या शर्मिंदा हों ।

आप किसी को याद नहीं रहते मगर आपकी कहीं बातें याद रह जाती हैं । किसी के लिए उम्र भर की मुस्कुराहट तो किसी के लिए टीस बन कर । आप पर निर्भर करता है कि आप उम्र भर किसी को किस तरह याद आना पसंद करेंगे ।

आप सबको गुरू पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं ।

मेरे जीवन के हर छोटे बड़े गुरू को मेर प्रणाम

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *