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बड़ा अजीब सा किस्सा है।
मेरे इस मानव जीवन का।
न ये हँसता है न रोता है।
बस उन्हें देखता रहता है।।

देखकर मेरी इस उदासी को।
दर्द मेरे अपनो को होता है।
जो मुझे समझते और जानते है।
वो मेरे दर्द के लिए परेशान है।।

वो दिलसे बहुत चाहते है।
मेरी लिए प्रार्थना करते है।
मेरे सुख दुख को अपनाते है।
इसलिए मेरे साथ रहते है।।

उन्हें भूलने की कोशिश करता हूँ।
ध्यान प्रभु भक्ति में लगता हूँ।
पर मन उसी ओर दौड़ता है।
जिस द्वारको बंद करना चाहता हूँ।।

ये जिंदगी भी बड़ी अजीब है।
कही धूप है तो कही छाव है।
पल भर में प्राण निकल जाना है।
पर फिर भी मरने से डरते है।।

आना और जाना निश्चित है।
हर फल खाना जरूरी है।
स्वाद का तो कहना क्या है।
मौसम में मीठा और वे मौसम
में कड़वा लगता है।।
इसी को दोस्तों हम आप
मानव जीवन कहते है।।

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