लगाकर आग दिल में वो, 
अक्सर भाग जाते है।
कह कर अपनी बात,
अक्सर भाग जाते है।
बिना जवाब के भी,
क्या वो समझ जाते है।
तभी तो बार बार आकर,
मुझसे कुछ कहते है।।
उन्हें प्यार हो गया है।
दिल की धड़कनों में,
शायद में बस गया।
तभी तो हँस हँसकर,
आंखों से तीर छोड़ते है।
शायद वो मेरे दिल को,
दूर से ही पढ़ लेते है।।
अब ये दिल भी उनकी, 
हंसी का आदि हो गया।
तभी तो निगाहें,
मिलाने को तरसता है।
और सुबह होने का,
रोज़ इंतजार करता है।
की कब हँसता हुआ
चेहरा उनका दिखे।।
जिस तरह वो बेचैन, 
मिलने को रहते है।
मन हमारा भी उनसे,
मिलने को तड़पता है।
तभी तो इधर उधर,
देखता रहता है।
और निगाहें मिलने पर,
ही शांत होता है।।
भले ही वो मुझसे,
कुछ न कहे मुंह से।
पर दिल उनकी आंखों को,
पढ़ कर समझता है।
और हंसते हुए होठों से मानो,
कोई गुलाब का फूल खिलता है।
और सामने खड़ा भंवरा भी,
गुलाब को ही पसंद करता है।।

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