मिले हम अपनी कविता, 
गीतों के माध्यम से तुम्हें।
परन्तु ये तो कुछ,
और ही हो गया।
पढ़ते पढ़ते मेरी गीतों के,
तुम प्रशंसक बन गये।
और दिल ही दिल में,
हमें चाहाने लगे।
और अपने से,
हमें लुभाने लगे।।
दिल से कहूँ तो मुझे भी, 
पता ही नहीं चला इसका।
और मैं भी तेरी टिप्पणियों का,
दीवाने हो गया।
अब तो तेरा मेरा हाल,
कुछ इस तरह का है।
जो एकदूसरे को देखे बिना।
हम दोनों अब रह सकते नहीं।।
कितना दिल से तुमने हमें पढ़ा।
ये तेरे चेहरे से समझ आता है।
दिल की गैहराईयों से देखे तो।
हमें तुममें मोहब्बत नजर आती है।।

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