song rakhi

राखी के धागों को कलाई भेजे हैं
भइया तुमको बहुत बधाई भेजे हैं

रक्षाबंधन पर्व नहीं बस तारों का
रक्षाबंधन पर्व न बस उपहारों का
भाई-बहन का प्रेम-पर्व रक्षाबंघन
सच बोलूँ तो राजा है त्यौहारों का

तार-तार होते रिश्तों के इस युग मे
हम संबंधों की गहराई भेजे हैं
राखी के धागों को कलाई भेजे हैं
भइया तुमको बहुत बधाई भेजे हैं

दीदी घर आने की इच्छा पूरी है
लेकिन अपनी सीमा है, मजबूरी है
दिन में तारे गिनवाती मंहगाई में
पेट और परिवार भी बहुत जरूरी है

याद मुझे करके तुम बिल्कुल मत रोना
कविता में अपनी परछाई भेजे हैं
राखी के धागों को कलाई भेजे हैं
भइया तुमको बहुत बधाई भेजे हैं

अगले साल तो निश्चित छुट्टी आएँगे
तेरे हाथों से राखी बँधवाएँगे
तेरा मनचाहा उपहार दिलाएँगे
तेरे सारे शिकवे दूर हो जाएँगे

चल पगली अब अपना मुँह मीठा कर ले
हम भावों से भरी मिठाई भेजे हैं
राखी के धागों को कलाई भेजे हैं
भइया तुमको बहुत बधाई भेजे हैं

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One thought on “गीत : राखी के धागों को कलाई भेजे हैं”

  1. बहुत भावपूर्ण कविता, आज के समय में बहन का प्रेम और एक भाई की न आ पाने की विवशता आज के यथार्थ को उजागर करती है। अगले साल आने का वादा संघर्षों के बीच संबंधों को बनाएं रखने की मूलभूत ललक , मानवीय संबंधों के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत है।

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