poem khoj ka parinam

समय ने चली अपनी चाल,
बिखर गये बड़े बड़े विध्दामान।

न धर्म काम आया किसी का,
न काम आया अब ये विज्ञान।
बहुत छेड़छाड़ कर रहे थे,
प्राकृतिक सनसाधन और संपदा का।
तो स्वंय प्रकृति ने ही,
रच दिया माहामारी का इतिहास।।

कभी कुत्तों बिल्ली की तुलना,
वैज्ञानिक इंसानों से करते थे।

तो कभी भालू की तुलना,
इंसानों से करके थकते नही थे।
पर अबकी बार सभी प्रयोग,
उनके फैल हो गए।
और खुद ही गधों की,
श्रेणी में अब खड़े हो गए।।

बहुत गूरूर था अपने,
अविष्कारों पर इनको।

प्रकृति के दिए बार बार,
संकेतो को नजरांदाज करते रहे।
अपने अभिमान के कारण ही,
प्रकृति को समझ न पाए ।
और विश्व को झोंक दिया,
बर्बादी की राह पर।।

न अब कुत्ता न बिल्ली
न इंसान काम आ रहा है।

बर्बादी और कामयाबी का,
जश्न शर्म से माना रहा है।
अभी भी वक्त है अभिमानियों,
यही पर लगा दो तुम विराम।
स्वंय प्रकृति ही अब,
सब कुछ ठीक कर देगी।।

मत खोजो इन विनाशकारी,
अस्त्र और शस्त्र आदि को।

जो सबसे पहले तुम्हें ही,
विनाश करके रख देंगे।
और अभी हाल ही में,
हुआ भी तो यही है।
मैत्री भाव दिलमे रखोगे,
तो बदल जाएगी विश्व काया।।

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