वो  जन्नत  सा  सुख
कहाँ इस  जग  में ,
है  जो माँ  तेरी  गोद  में ….
जब  से मैने आँखें  खोली ,
पाया खुद को तेरी झोली में ,
इस  मखमली कोमल  बिछावन  में ,
वो चैन  की  नींद कहाँ जो
झूला  झूलाती  तेरी बांहों  में ,
वो  जन्नत  सा  सुख
कहाँ इस  जग में ,
है  जो माँ  तेरी  गोद  में ….
ना छूट कर गिरने  का भय ,
ना फिकर  संभल कर उठने  का ,
जब हाथ खुद का पाया तेरी हथेली में ,
इस  गीत – संगीत तरंगित में ,
बताओ  वो सूकून  कहाँ  जो ,
माँ गुनगुनाती तेरी लोरी  में ,
वो  जन्नत  सा  सुख
कहाँ इस  जग  में ,
है  जो माँ  तेरी  गोद  में ….
ना नीम की छांव में ,
ना चाँद की चाँदनी  में ,
ना साथी – साथ में ,
ना ए सी , पंखे और कूलर में ,
बताओ  ना वो शितलता कहाँ जो ,
माँ तेरे आँचल की ओट में ,
वो  जन्नत  सा  सुख
कहाँ इस  जग  में ,
है  जो माँ  तेरी  गोद  में ….
ना खीर में , ना पकवान  में ,
ना ही  किसी मिष्ठान्न में ,
और ना ही भोग छप्पन में ,
ना भांति – भांति  के असंख्य भोजन में ,
वो मन भावन  स्वाद कहाँ  जो ,
माँ तेरे हाथों  के निवालों  में ,
वो  जन्नत  सा  सुख
कहाँ इस  जग  में ,
है  जो माँ  तेरी  गोद  में ….
ज़िन्दगी  को समझन में ,
सब पाने की  ऊलझन में ,
कुछ खोने की तड़पन  में ,
इस जीवन संघर्ष – समर्पन में ,
मन को वो चैन कहाँ  जो ,
माँ तेरी आँखों की बेचैनी  में ,
वो  जन्नत  सा  सुख
कहाँ इस  जग  में ,
है  जो माँ  तेरी  गोद  में ….
जीवन के हास – परिहास में ,
या  वक़्त के  करूण – क्रन्दन में ,
या  ज़माने  की खुदगर्जी में ,
इन  दिखावाटी  अपने जन में ,
वो अपनापन कहाँ जो ,
माँ तेरे नि:स्वार्थ प्रेम समर्पन में ,
वो  जन्नत  सा  सुख
कहाँ इस  जग  में ,
है  जो माँ  तेरी  गोद  में ….
‘मनोहर’ करता हूँ ईश्वर से यही कामना ,
बस बचपन यही ताउम्र रहने दो ,
माँ का आँचल , माँ की गोद ,
बस पूरा जीवन यहीं जी लेने दो,
भले हीं पुष्प सा जीवन  छोटा  हो,
पर माँ की यही गोद बनी हो ,
चाहे सुख  ना हो  स्वर्ग सा ,
कांटे  भी हो तो  नहीं कोई गम ,
ममता की बस थोडी छांव हो ,
आसमां सा फैला माँ का आँचल हो ,
होऊँ  माँ, मैं तेरी गोद में बस l
वो  जन्नत  सा  सुख
कहाँ इस  जग  में ,
है  जो माँ  तेरी  गोद  में ….

 
	
