खिड़की से एक टक बाहर देखती या बैचैनी से इधर-उधर चहलकदमी करती एक नई नवेली दुल्हन मानो आज उस पर तूफान आया हुआ है। आज उसे हर रिश्ता फीका लग रहा हो। इसी उधेड़बुन में थी कि अब क्या होगा।

समय बीतता गया करवटें बदल-बदल पूरी रात जागते हुये गुजार दी। सुबह ही उसके पति ने चेतावनी दे कर काम पर चला गया कि यदि कल तक मोटरसाइकिल के पैसे तेरा बाप नहीं लया तो समझ लेना तलाक़ दे दूंगा। कांपते हुये हाथो से अपनी अब्बा को फ़ोन लगाई तो उधर से उसके अब्बा ने पूछा “कैसी हो बेटी।” इस पर बेटी का मानो तो सब्र का हर बाँध तोड़ कर उसकी आंखो से बह निकले।

बेटी की बात सुन अब्बा ने सुबह-सुबह ही अपनी अंडे वाली दुकान बेच कर बेटी के दरवाजे पर पहुंचे, बेटी की सास-ससुर ने खातिरदारी की और फिर आने की वज़ह सुन लड़के का बाप बहुत खुश हुआ और शाम को शो रूम से मोटरसाइकिल की खरीदारी हो गयी मानो आज उस घर में कोई त्यौहार का माहौल था दोनो बाप बेटे के लिए।

अगले ही दिन लड़के का अब्बा बहुत ही ठाठ से मोटरसाइकिल पर सवार होकर गली मुहल्ले में दिखाने चलें कि आगे से आ रही जीप के अपनी संतुलन खो दी और इस शोषित दहेज़ वाले नये मोटरसाइकिल से टकरा गयी।

मोटरसाइकिल तो गैरेज में जाकर मरम्मत हो गयी लेकिन लड़के के अब्बा जान का हाथ-पैर डाँक्टर ने भी सही से मरम्मत नही कर पाया विकलांगता की जीवन जी रहे है।

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