सत्य एक, बीती दो रात है
ये दो चांदनी, फिर कहे कोई बात है
रूको नहीं, झुकों नहीं
दिन भी है, फिर रात है।
दिशा प्रशस्त हो चुकी
कदम – कदम पे कलम धार है
जो रूके नहीं चलते चले हम
फिर वही एक दिन बादशाह है।
घिस – घिस के तेग तेज धार है
रथ पे बैठा रण समर को तैयार हैं
जय हो या दंश फिर भी पुष्प मेघ को हार है
तुम दिव्य किरणें हो देखों आक तार – तार है।
सत्य कहो तुम दीप हो या तमस !
फिर क्यों देह शृंगार है या संस्कार
फूल खिलाओं कंटीली कीचड़ों में अब
वर्तमान भी नव्य सृजन को अतीत से खड़ा है।
सत्य एक, बीती दो रात है
ये दो चांदनी, फिर कहे कोई बात है
रूको नहीं, झुकों नहीं
दिन भी है, फिर रात है।